Tuesday, September 21, 2010

तारे फ़लक से.........

तारे फ़लक से
हमसे,
कहते हैं सर उठाओ
बेले की खुशब
आकर,
कहती है गुनगुनाओ
फूलों की टोलियाँ मिल ,
आ पास बैठतीं हैं ,
शाखें ,लताएँ अक्सर
कुछ देर
ठहरतीं हैं .
बIदल गगन से
हमसे,
कहता भरो उड़ानें ,
तितली मुझे बताती
कि
कैसे पंख तानें ,
कुंजों से रोज़ होकर,
आती हवाएं मिलने ,
पत्तों पे अटकी बूँदें भी
साथ -साथ
चलने .
फिर ................
धूप-छांव आते -जाते
पूछा करतें हैं ,
हिमगिरि के संदेसे आ
हिम्मत
भरते हैं,
फूलों कि क्यारी से
हर पौधे ,
बातें करतें हैं ,
हरी दूब, शबनम,पराग
सब,
दोस्त बने रहतें हैं .
चिड़ियों का कलरव
समझाता,
झरनों का ख़त
आता है,
नदियों से कल-कल
सागर से
उठ तरंग ,
बहलाता है .
कलियाँ हंसती ,
मुस्काती ,
कुछ-कुछ कहती
रहती है ,
सूरज कि किरणें
मुझपर ,
अपनी नज़रें रखतीं हैं.
गोधूलि का आसमान
आ,
हाल-चाल लेता है
और रात में
चाँद वहाँ से,
निगरानी रखता है.