पहले जिठानी और अब देवर,
कई बार ऐसा होता है........जब परिवार के लोग मिलते हैं ...... अनायास ही किसी बात पर एक कविता का जन्म हो जाता है. कुछ दिनों पहले मेरे देवर आये.......अब देखिये कैसी कविता बन गयी
खास उनके लिए.........
आती नहीं है
घर में मेरे,
बोतल-ए-शराब,
बेइख्तियार लत हो तो......
पीकर यहाँ आना.
हर रंग की बोतल में
मिलेगा यहाँ
पानी,
हल्कों की तरावट को
मिलेगा यहाँ
पानी,
निम्बू निचोड़कर,नमक
चाहो तो डाल लो,
शीशे की गिलासों में
मिलेगा यहाँ
पानी.
जो ज़ाम भर सके
वो
सुराही नहीं यहाँ,
चढ़ जाये जो
आँखों में
वो
प्याली नहीं यहाँ,
'पेप्सी' से सट के
हैं खड़ी,
'लिम्का' की बोतलें,
धीरे से कह रहीं
कोई,
हमको भी तो
पी ले,
कितना भी पियें
हम तो
बहकने नहीं देंगे.....
अपना तो ये वादा है
कि
गिरने नहीं देंगे.