Saturday, May 12, 2012

वह ममता.......

वह ममता कितनी प्यारी   थी ,
वह आँचल कितना सुन्दर था,
जिसके   कोने  की    गिरहों में
थी  मेरी   ऊँगली बंधी     हुई .
तब ........
बित्ते       भर   की खुशियाँ थी,
ऊँगली   भर की    आकांछा थी,
उस आँचल की   उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया    थी.....

Tuesday, May 8, 2012

ओहि दिन सभा सँ अबैत काल.......[मैथिली में]

ओहि दिन 
सभा सँ अबैत काल
ओझा भेटैलाह..
कहय लगलाह-
'मैथिल बजैत छी त 
मैथिली में किये नईं 
लिखैत छी ?
एतवा सुनितहि
कलम जे सुगबुगायेल से  
रुकबाक
नामें नईं लईत अछि 
किन्तु 
बचपन में सुनल 
दु-चारि टा 
शब्द क प्रयोग सँ 
कि कविता लिखल 
संभव थिक?
सैह भावि,जुटावय लगलौं
डायरी में,
छोट-बड़ नाना प्रकारक बात.
कुसियारक खेत,
इजुरिया रात,
भानस घर त 
भगजोगनि'क  बात.
नेना-भुटका  के  
धमगज्जड़ में 
कोइली क बोली 
सुनै लगलौं ,
भिन्सहरे उठि क 
एम्हर-ओम्हर टहलै लगलौं.
बटुआ में राखी क 
सरौता-सोपारी,
हाता में बैस क 
तकैत छी फुलवारी.
सेनुरिया आमक रंग,
सतपुतिया बैगन क बारी, 
चिनिया केरा क घौड़ 
गोबर क पथारि.
पाकल अछि कटहर,
सोहिजन जुआएल अछि 
ओड्हुल-कनैल बीच 
नेबो गमगमायेल अछि.
किन्तु 
कविता क बीच में 
ई सभक कि प्रयोजन?
अनर्गल बात सँ 
ओझा बिगडियो जैताह,
थोर-बहुत जे इज्जत अछि 
सेहो उतारि देताह.
गाय-गोरु,
कुक्कुर-बिलाड़
सभक बोलियो क बारे में 
लिखल जा सकैत छई
किन्तु 
से सब पढय बाला चाही,
सौराठक मेला क प्रसंग लिखू त 
बुझै बाला चाही.
कखनों हरिमोहन झा क 
'बुच्ची दाई 'आ 'खट्टर कका' क 
बारे में सोचैत छि त 
कखनों 
'प्रणम्य देवता' क चारोँ
'विकट-पाहुन के 
ठाढ़ पबैछी,
कखनों लहेरियासराय क 
दोकान में 
ससुर-जमाय-सार क बीच 
कोट ल क तकरार त 
कखनों होली क तरंग में 
'अंगरेजिया बाबु 'क  श्रृंगार. 
सभ टा दृश्य 
आंखि क आगे,
एखन पर्यन्त 
नाचि रहल अछि .
'कन्यादान' सँ ल क 
'द्विरागमन' तक 
खोजैत  चलैछी 
कविता क सामग्री,
अंगना,ओसारा,इंडा.पोखरी 
चुनैत चलैत छी 
कविता क सामग्री.
शनैः शनैः 
शब्दक पेटारी
नापि-तौलि क 
भर रहल छी,
जोड़ैत-घटबैत,
एहिठाम -ओहिठाम 
हेर-फेर 
करि रहल छी.
जाहि दिन 
अहाँ लोकनिक  समक्छ 
परसये जकां किछ 
फुईज  जायेत,
इंजुरी में ल क 
उपस्थित भ जाएब.....
यदि कोनों भांगठ रहि जाये त 
हे मैथिल कविगण,
पहिलहीं
छमा द दै जायेब.




Thursday, May 3, 2012

कि.....मैं तुम्हें......

मैं अपनी पलकों पर 
तुम्हारे 
इशारों के जाल 
बुनता हूँ......
तुम्हारे 
ख्वाबों की  उड़ान  में 
साथ-साथ 
उड़ता हूँ.......
सहेजता हूँ  तुम्हारी 
मिठास,
मन  के  कोने-कोने  में
कि.....मैं  तुम्हें
बेहद प्यार करता हूँ