ओहि दिन
सभा सँ अबैत काल
ओझा भेटैलाह..
कहय लगलाह-
'मैथिल बजैत छी त
मैथिली में किये नईं
लिखैत छी ?
एतवा सुनितहि
कलम जे सुगबुगायेल से
रुकबाक
नामें नईं लईत अछि
किन्तु
बचपन में सुनल
दु-चारि टा
शब्द क प्रयोग सँ
कि कविता लिखल
संभव थिक?
सैह भावि,जुटावय लगलौं
डायरी में,
छोट-बड़ नाना प्रकारक बात.
कुसियारक खेत,
इजुरिया रात,
भानस घर त
भगजोगनि'क बात.
नेना-भुटका के
धमगज्जड़ में
कोइली क बोली
सुनै लगलौं ,
भिन्सहरे उठि क
एम्हर-ओम्हर टहलै लगलौं.
बटुआ में राखी क
सरौता-सोपारी,
हाता में बैस क
तकैत छी फुलवारी.
सेनुरिया आमक रंग,
सतपुतिया बैगन क बारी,
चिनिया केरा क घौड़
गोबर क पथारि.
पाकल अछि कटहर,
सोहिजन जुआएल अछि
ओड्हुल-कनैल बीच
नेबो गमगमायेल अछि.
किन्तु
कविता क बीच में
ई सभक कि प्रयोजन?
अनर्गल बात सँ
ओझा बिगडियो जैताह,
थोर-बहुत जे इज्जत अछि
सेहो उतारि देताह.
गाय-गोरु,
कुक्कुर-बिलाड़
सभक बोलियो क बारे में
लिखल जा सकैत छई
किन्तु
से सब पढय बाला चाही,
सौराठक मेला क प्रसंग लिखू त
बुझै बाला चाही.
कखनों हरिमोहन झा क
'बुच्ची दाई 'आ 'खट्टर कका' क
बारे में सोचैत छि त
कखनों
'प्रणम्य देवता' क चारोँ
'विकट-पाहुन के
ठाढ़ पबैछी,
कखनों लहेरियासराय क
दोकान में
ससुर-जमाय-सार क बीच
कोट ल क तकरार त
कखनों होली क तरंग में
'अंगरेजिया बाबु 'क श्रृंगार.
सभ टा दृश्य
आंखि क आगे,
एखन पर्यन्त
नाचि रहल अछि .
'कन्यादान' सँ ल क
'द्विरागमन' तक
खोजैत चलैछी
कविता क सामग्री,
अंगना,ओसारा,इंडा.पोखरी
चुनैत चलैत छी
कविता क सामग्री.
शनैः शनैः
शब्दक पेटारी
नापि-तौलि क
भर रहल छी,
जोड़ैत-घटबैत,
एहिठाम -ओहिठाम
हेर-फेर
करि रहल छी.
जाहि दिन
अहाँ लोकनिक समक्छ
परसये जकां किछ
फुईज जायेत,
इंजुरी में ल क
उपस्थित भ जाएब.....
यदि कोनों भांगठ रहि जाये त
हे मैथिल कविगण,
पहिलहीं
छमा द दै जायेब.