घर में शादी -ब्याह हो ,मुंडन हो , जन्मोत्सव हो या कोई भी शुभ अवसर हो ,हलवाई के बैठते ही पूरे
घर का माहौल गमगमाने लगता है ,रौनक एकदम चरम सीमा पर पहुँच जाती है . लोग-बाग अकेले ,दुकेले ,सपरिवार आते रहते हैं ,खाते-पीते ,हँसते-गाते ,मौज-मस्ती करते हैं…… न प्लेटों की गिनती न मेहमानों की लेकिन …… ये 'पर -प्लेट' वाली संस्कृति बड़ी बेरहम होती है . मेहमानों की सूची में लगातार कतर-ब्योंत करती रहती है और अंतत: कितनों का नाम खारिज कर देती है . बेचारी 'पर-प्लेट' कितनी मजबूर होती है ……. अपनों को भी गैर बना देती है …….