दरिया की रवानी में ,फुर्सत का सलीका हो
साज़ों पे रंगे-रौगन ,कोई रोज़ न फीका हो ।
दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
हद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।
अल्फाज़े तरन्नुम में ,लफ्जों का सिलसिला हो ,
ज़हनों -जिगर कि उल्फ़त में ,आपका गुमां हो
रेशम कि डोरिओं में ,ज़ज्वात का मोती हो ,
राहों में गुलिस्तां हो ,फितरत में तबस्सुम हो .