दरिया की रवानी में ,फुर्सत का सलीका हो
साज़ों पे रंगे-रौगन ,कोई रोज़ न फीका हो ।
दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
हद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।
अल्फाज़े तरन्नुम में ,लफ्जों का सिलसिला हो ,
ज़हनों -जिगर कि उल्फ़त में ,आपका गुमां हो
रेशम कि डोरिओं में ,ज़ज्वात का मोती हो ,
राहों में गुलिस्तां हो ,फितरत में तबस्सुम हो .
Wednesday, July 29, 2009
एक चाह ....
रेशम की डोरिओं में ,ज़ज्बात का मोती हो ,
राहों में गुलिश्तां हो ,फ़ितरत में तब्बस्सुम हो .
राहों में गुलिश्तां हो ,फ़ितरत में तब्बस्सुम हो .
Friday, July 24, 2009
ए़क सुबह .........
दूब पर शबनम की चादर थी बिछी,
छींटे पडे पत्तों पे थे ,
थी पंखुरी के भाल पर मोती जडी
कि ओ़स इतना था गिरा
कल रात भर ...........
छींटे पडे पत्तों पे थे ,
थी पंखुरी के भाल पर मोती जडी
कि ओ़स इतना था गिरा
कल रात भर ...........
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