जाड़ों में
प्रायः
दिख जाते हैं,
वृद्ध-दंपत्ति, झुकी हुई
माँ ,कांपते हुए
पिता.....धूप सेकते हुए.....
कभी 'पार्क'में,कभी
'बालकनी'में,
कभी 'लॉन' में
तो कभी'बरामदों' में.
मोड़-मोड़कर
चढ़ाये हुए 'आस्तीन'
और
खींच-खींचकर
लगाये हुए'पिन' में
दिख जाता है.......
वर्षों से
विदेशों में बसे,
उनके
धनाढ्य,
बाल-बच्चों का
भेजा हुआ,
बेहिसाब प्यार .
ऊल-जलूल ,पुराने,
शरीर से
कई गुना बड़े-बेढंगे
कपड़ों का,
दुःखद सामंजस्य,
सुदूर........किसी देश में,
सम्पन्नता की
परतों में
लिपटी हुई नस्ल को,
धिक्कारती.......
ठंढ से, निश्चय ही
बचा लेती है,
इस पीढ़ी की
सामर्थ्य को,
संभाल लेती है........लेकिन
कृतघ्नता के आघात की
वेदना का
क्या......
आपसे अनुरोध है,
इतना ज़रूर कीजियेगा,
कभी किसी देश में
मिल जाये
वो नस्ल......तो
इंसानियत का,
कम-से कम
एक पर्चा,
ज़रूर
पढ़ा दीजियेगा..........
प्रायः
दिख जाते हैं,
वृद्ध-दंपत्ति, झुकी हुई
माँ ,कांपते हुए
पिता.....धूप सेकते हुए.....
कभी 'पार्क'में,कभी
'बालकनी'में,
कभी 'लॉन' में
तो कभी'बरामदों' में.
मोड़-मोड़कर
चढ़ाये हुए 'आस्तीन'
और
खींच-खींचकर
लगाये हुए'पिन' में
दिख जाता है.......
वर्षों से
विदेशों में बसे,
उनके
धनाढ्य,
बाल-बच्चों का
भेजा हुआ,
बेहिसाब प्यार .
ऊल-जलूल ,पुराने,
शरीर से
कई गुना बड़े-बेढंगे
कपड़ों का,
दुःखद सामंजस्य,
सुदूर........किसी देश में,
सम्पन्नता की
परतों में
लिपटी हुई नस्ल को,
धिक्कारती.......
ठंढ से, निश्चय ही
बचा लेती है,
इस पीढ़ी की
सामर्थ्य को,
संभाल लेती है........लेकिन
कृतघ्नता के आघात की
वेदना का
क्या......
आपसे अनुरोध है,
इतना ज़रूर कीजियेगा,
कभी किसी देश में
मिल जाये
वो नस्ल......तो
इंसानियत का,
कम-से कम
एक पर्चा,
ज़रूर
पढ़ा दीजियेगा..........