अपनी अदालत थी ,
तीर पर तीर
चलने लगे,
कुछ अच्छा तो
नहीं किया
बेवजह
बुराई करने लगे.
बाज़ी थी शतरंज की ,
अपने सब
मोहरे थे,
सही तो
क्या चलते ,
चाल ही
बदलने लगे.
समय प्रतिकूल था ,
भ्रम में
उसूल था,
लाज़मी था सोचना,
सोचे बिना
चलने लगे.
Tuesday, February 9, 2010
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