Saturday, October 27, 2012


शीत का प्रथम स्वर.........

प्रत्युष  का  स्नेहिल स्पर्श  
पाते ही,
हरसिंगार  के  निंदियाये फूल,  
झरने  लगते  हैं  
मुंह  अँधेरे,
वन-उपवन  की
अंजलियों  में
ओस से नहाया हुआ
सुवास,
करने  लगता  है  
अठखेलियाँ  
आह्लाद की,
पत्तों  की सरसराहट  
रस-वद्ध  रागिनी  
बनकर,
समा जाती  हैं  
दूर  तक .......
हवाओं  में,
गुनगुनी  सी  धूप
आसमान  से उतरकर 
कुहासे  को  बेधती  हुई
बुनने  लगती  है  
किरणों  के  जाल,
तितलियाँ पंखों पर 
अक्षत, चन्दन,रोली  लिए  
करती  हैं  द्वारचार  
और  
धरती,
मुखर  मुस्कान  की 
थिरकन  पर 
झूमती  हुई,  
स्वागत  करती  है........
शीत  के  
प्रथम  स्वर  का.
  

Friday, October 19, 2012

पूजो एलो, चोलो मेला......

अपने 'ग्रैंड-सन' के लिए पहली बार बँगला में लिखने की कोशिश की है.......लिपि देवनागरी ही रखी हूँ जिससे ज़्यादा लोग पढ़ सकें......आपकी प्रतिक्रिया पता नहीं क्या होगी.....जो भी हो,सर आँखों पर.......


पूजो एलो, चोलो मेला,
हेटे-हेटे जाई,
नतून जामा,नतून कापोड़,
नतून जूतो चाई.
बाबा एनो रोशोगोला,
मिष्टी दोईर हांड़ी,
माँ गो तुमि
शेजे-गूजे,
पोड़ो ढ़ाकाई शाड़ी.
आजके कोरो देशेर खाबा,
शुक्तो,बेगुन भाजा,
गोरोम-गोरोम भातेर ओपोर,
गावार घी दाव
ताजा.
चोलो 'शेनेमा'
'पॉपकॉर्न' खाबो, खाबो
आइस-क्रीम,
आजके किशेर ताड़ा एतो
कालके छूटीर दिन.
रात्रे खाबो 'चिली' 'चिकेन',
भेटकी माछेर
'फ्राई',
ऐई पांडाले,ओई पांडाले,
होई-चोई
कोरे आई.



Sunday, October 14, 2012

कभी बाल सूर्य देखा है क्या ?

बड़े-बड़े शहरों में 'सूर्योदय' का मनोरम  दृश्य दुर्लभ हो गया है.ऊँची-ऊँची इमारतों के पीछे  सूर्य के बाल  रूप की छठा छिप जाती है.इसी भाव पर ये कविता है ........

कभी बाल सूर्य
देखा है क्या ?
हर रोज़ क्षितिज  के
कोने में,
पौ फटते ही,
एक लाल-लाल
गोला-गोला,
चपटा-चपटा
थाली जैसा,
देखा है क्या?
कभी बाल लाल की
स्निग्ध प्रभा
क्रीड़ा-कौतुक,
कभी बाल लाल की
रत्न-जटित
जो स्वर्ण मुकुट,
कभी बाल लाल
शीतल प्रकाश का
रंग-जाल,
कभी बाल लाल के
मस्तक का
हँसता गुलाल,
कभी बाल लाल का
सम्मोहन
जादू विशाल,
कभी बाल लाल की
रूप छठा से
मुदित भाल,
कभी बाल लाल का
मेघ-माल,
कभी बाल लाल की
तेज़ चाल,
हर रोज़ क्षितिज के    
कोने में,
पौ फटते ही,
एक लाल-लाल
गोला-गोला,
चपटा-चपटा
थाली जैसा,
देखा है क्या?
कभी बाल सूर्य
देखा है क्या ?