तुम सृजन की
छाँव में,
मधु-रागिनी सी
आ गयी,
तुम सरल किरणें लिए
मेरी
यामिनी में
आ गयी.
कमनीय काया,कनक
कुंदन बदन,
कोमल लता,
चंपा-कली अधरें,
भ्रमर
काली लटों से
झांकता.
दो नयन
स्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
सुर्ख जोड़ा,पांव में
पायल,
महावर की ये
लाली,
झुक के पलकों ने
भरी
मदिरा से है.....
आँखों की प्याली.
हे रूपसि,
बिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .
छाँव में,
मधु-रागिनी सी
आ गयी,
तुम सरल किरणें लिए
मेरी
यामिनी में
आ गयी.
कमनीय काया,कनक
कुंदन बदन,
कोमल लता,
चंपा-कली अधरें,
भ्रमर
काली लटों से
झांकता.
दो नयन
स्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
सुर्ख जोड़ा,पांव में
पायल,
महावर की ये
लाली,
झुक के पलकों ने
भरी
मदिरा से है.....
आँखों की प्याली.
हे रूपसि,
बिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .