Tuesday, January 28, 2014

ख्वाबों के पर.....

हवाओं के आँचल पर खोल दें
ख्वाबों के पर.....
तरु-दल के स्पंदन से 
आकांछाओं के जाल बुनें.....
झूम आयें गुलाब के गुच्छों पर
नर्म पत्तों की महक से 
चलो, कुछ बात करें.......
आसमानी उजालों में, सोने की धूप 
छुयें,मकरंद के पंखों से
कलियों को जगायें....
कि ऋतु-वसंत है.......
सूरज की पहली किरण से नहाकर 
तुम...... 
और 
गूँथकर चाँदनी को अपने बालों में 
मैं......
चलो स्वागत करें.......
  

Saturday, January 25, 2014

कतय गेल गणतंत्र-दिवस......

कतय गेल गणतंत्र-दिवस 
झंडा क गीत 
कतय सकुचायेल,
दृश्य सोहनगर,देखबैया
छथि 
कतय नुकाएल.
लालकिला आर कुतुबमिनारक
के नापो ऊँचाई,
चिड़ियाघर जंतर-मंतर क 
छूटल 
आबा-जाही.
पिकनिक क पूरी-भुजिया 
निमकी,दालमोट,
अचार,
कलाकंद,लड्डुक डिब्बा लय 
मित्र,सकल परिवार.
कागज़ के छिपी-गिलास,
थर्मस  में 
भरि-भरि चाय,
दुई-चारि टा शतरंजी वा
चादर लिय 
बिछाए.
ई सबहक दिन 
बीति गेल, आब  
'मॉल' आर 'मल्टीप्लेक्स',
दही-चुड़ा छथि मुंह 
बिधुऔने,
घर -घर बैसल 
'कॉर्न-फ्लेक्स'.
'कमपिऊटर' पीठी पर 
लदने
मुठ्ठी में 'मोबाइल',
अपने में छथि 
सब केओ बाझल 
यैह नबका 
'स्टाइल'....
 

Thursday, January 23, 2014

भूल जाती हूँ मैं........

भूल जाती हूँ मैं ....... कि 
झूलती है तुम्हारी 
कमर पर,
तुम्हारे घर की 
चाभियाँ......और 
तुम,
बड़ी हो गयी हो....... 

Saturday, January 18, 2014

कुछ किताबें ,कुछ कलम......

कुछ किताबें ,कुछ कलम 
अखबार के पन्ने 
सुबह के…… 
एक मैं और एक 
दीवारों पे 
परछाईं मेरी है....... 

Wednesday, January 15, 2014

कि.....मैं तुम्हें......

मैं अपनी पलकों पर 
तुम्हारे 
इशारों के जाल 
बुनता हूँ......
तुम्हारे 
ख्वाबों की उड़ान में 
साथ-साथ 
उड़ता हूँ.......
सहेजता हूँ तुम्हारी 
मिठास,
मन के कोने-कोने में
कि.....मैं तुम्हें
बेहद प्यार करता हूँ..........

Tuesday, January 7, 2014

कहा था मैंने उस दिन बुखार से.....

कहा था मैंने उस दिन 
बुखार से......
चले जाओ,लेकिन 
गया कहाँ ?
मैं बोली,
छुप  जाओ कम- से- कम 
अकेली हूँ,
बच्चे परेशान  हो जाते हैं,
इधर छुट्टी,उधर छुट्टी ,
भाग-दौड़,
झमेला महसूस करती हूँ.
ऐसा करो,
जो मन नहीं भरा 
तो आ जाना,
जब मेरे पति आ जाएँ.....
चाहे रह लेना 
दो-चार दिन,
वो संभाल लेंगे,
दवा-ववा पिलायेंगे 
देख-भाल लेंगे....और 
आ गया बुखार,
सुबह पति,शाम में बुखार.
अरे,इतनी जल्दी क्या थी,
चाहे नहीं ही आते,
क्या फ़र्क पड़ जाता....
कसैली सी जीभ है 
ढ़ीला-ढ़ीला मन....... पर 
तुम्हें क्या.....
आ गए एकदम  
बुखार बोला,
मुझे तुम्हारी फ़िक्र है 
इसीलिए तो 
आया हूँ,
देख गया था 
बच्चों का लाया हुआ 
'हॉर्लिक्स,'केक','एपल',
'पाइन-एपल',
पैकेट भर अंजीर,
हरी-हरी 
पिस्ते की बरफी 
करती रही अधीर.....
मैं देख गया था 
इसीलिए तो 
आया हूँ....
तुम मुझे खिलाओ 
मुझे पिलाओ,
ताकत तुमको दे दूंगा,
कौन यहाँ रहने आया हूँ,
खा-पीकर   
खुद ही चल दूंगा.......  

Thursday, January 2, 2014

सहिष्णुता के आवरण में......

सहिष्णुता के
आवरण में
ज्ञान-विज्ञान से
अन्याय की त्रासदी को
ललकारकर......
आत्मबल के आभूषण से
सुसज्जित
ईंट-पत्थरों के बीच
कंक्रीट सी.....
कोमलांगिनी की सशक्त
उँगलियों ने
पकड़ ली है
समय की रफ़्तार......
तकनिकी ज्ञान के
माध्यम से
खोलती  हुई हर द्वार......
नए-नए आयाम
बनाती है,
शिखर पर झंडे
लगाती है,
यह आज की नारी है......
हर जगह
पहुँच जाती है........

Wednesday, January 1, 2014

चूड़ियों की खनक है........

सूक्ष्म कन्धों पर 
दायित्व का 
जहाज़  लिए…… 
अडिग पैरों के
संतुलन
और
असीमित भुजाओं के
अनुशासन से,
श्रम का
योगदान कर....... 
परिवार को सींचती,
स्वाभिमान के
गौरव को
सहेजती-संभालती,
यह आज की नारी है.......
इसमें
एक अलग ही
चमक है....... 
विकास के
हर आँगन में,
अब
चूड़ियों की खनक है........