हवाओं के आँचल पर खोल दें
ख्वाबों के पर.....
तरु-दल के स्पंदन से
आकांछाओं के जाल बुनें.....
झूम आयें गुलाब के गुच्छों पर
नर्म पत्तों की महक से
चलो, कुछ बात करें.......
आसमानी उजालों में, सोने की धूप
छुयें,मकरंद के पंखों से
कलियों को जगायें....
कि ऋतु-वसंत है.......
सूरज की पहली किरण से नहाकर
तुम......
और
गूँथकर चाँदनी को अपने बालों में
मैं......
चलो स्वागत करें.......