सहिष्णुता के
आवरण में
ज्ञान-विज्ञान से
अन्याय की त्रासदी को
ललकारकर......
आत्मबल के आभूषण से
सुसज्जित
ईंट-पत्थरों के बीच
कंक्रीट सी.....
कोमलांगिनी की सशक्त
उँगलियों ने
पकड़ ली है
समय की रफ़्तार......
तकनिकी ज्ञान के
माध्यम से
खोलती हुई हर द्वार......
नए-नए आयाम
बनाती है,
शिखर पर झंडे
लगाती है,
यह आज की नारी है......
हर जगह
पहुँच जाती है........
आवरण में
ज्ञान-विज्ञान से
अन्याय की त्रासदी को
ललकारकर......
आत्मबल के आभूषण से
सुसज्जित
ईंट-पत्थरों के बीच
कंक्रीट सी.....
कोमलांगिनी की सशक्त
उँगलियों ने
पकड़ ली है
समय की रफ़्तार......
तकनिकी ज्ञान के
माध्यम से
खोलती हुई हर द्वार......
नए-नए आयाम
बनाती है,
शिखर पर झंडे
लगाती है,
यह आज की नारी है......
हर जगह
पहुँच जाती है........
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका-
bilkul aaj ki naari har morche par khadi hai.............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (4-1-2014) "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!आप को नये वर्ष की शुभकामनाए..
ReplyDeleteआज की जो भी नारी सशक्त है..उसे औरों को भी सशक्त बनाना है..
ReplyDeleteकल वाली कविता का एक और संसकरण... चूड़ियों की खनक से चाँद की ऊँचाइयों का सफर.. बहुत अच्छा!!
ReplyDeleteआज की नारी की उत्थान गाथा ...सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteनया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
नई पोस्ट नया वर्ष !
नारी हर जगह उपस्थित है, जहां साक्षात भगवान नहीं हैं, वहां भी वह है।
ReplyDeletenav varsh par nav chetna .sundar prastuti ..
ReplyDeleteबकई। यथार्थ चित्रण.....
ReplyDeleteसहिष्णुता को कम नहीं आंकना चाहिए...यही आज नारी की शक्ति है...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना.....आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-कुछ हमसे सुनो कुछ हमसे कहो