कहा था मैंने उस दिन
बुखार से......
चले जाओ,लेकिन
गया कहाँ ?
मैं बोली,
छुप जाओ कम- से- कम
अकेली हूँ,
बच्चे परेशान हो जाते हैं,
इधर छुट्टी,उधर छुट्टी ,
भाग-दौड़,
झमेला महसूस करती हूँ.
ऐसा करो,
जो मन नहीं भरा
तो आ जाना,
जब मेरे पति आ जाएँ.....
चाहे रह लेना
दो-चार दिन,
वो संभाल लेंगे,
दवा-ववा पिलायेंगे
देख-भाल लेंगे....और
आ गया बुखार,
सुबह पति,शाम में बुखार.
अरे,इतनी जल्दी क्या थी,
चाहे नहीं ही आते,
क्या फ़र्क पड़ जाता....
कसैली सी जीभ है
ढ़ीला-ढ़ीला मन....... पर
तुम्हें क्या.....
आ गए एकदम
बुखार बोला,
मुझे तुम्हारी फ़िक्र है
इसीलिए तो
आया हूँ,
देख गया था
बच्चों का लाया हुआ
'हॉर्लिक्स,'केक','एपल',
'पाइन-एपल',
पैकेट भर अंजीर,
हरी-हरी
पिस्ते की बरफी
करती रही अधीर.....
मैं देख गया था
इसीलिए तो
आया हूँ....
तुम मुझे खिलाओ
मुझे पिलाओ,
ताकत तुमको दे दूंगा,
कौन यहाँ रहने आया हूँ,
खा-पीकर
खुद ही चल दूंगा.......
तुम मुझे खिलाओ , पिलाओ !
ReplyDeleteये बुखार तो बड़ा ढीठ है !
सही।
ReplyDeleteवाह बहुत ही शानदार ।
ReplyDeleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteअब आप बुख़ार को इतने ख़ूबसूरत अन्दाज़ में डिफ़ाइन करेंगीं तो हर कोई बीमार होने की दुआएँ मांगने लगेगा!!
ReplyDeleteमुस्कुराने को जी चाह रहा है!!
बुखार आसानी से नहीं जाता ...
ReplyDeleteवाह! बहुत रोचक प्रस्तुति....
ReplyDeletekya khoob andaz hai batiyane ka
ReplyDeleteबहुत ही रोचक प्रस्तुति....
ReplyDeleteवाह..बुखार तो बड़ा लालची निकला..चला गया न ..
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबुखार का मन अंजीर बादाम देख कर ललचेगा ही... क्या है 2-4 दिन खा पीकर चला जाएगा. कितना तो राहत मिलता है जब वो आता है, कुछ दिन आराम करने का अवसर जो मिलता है. बहुत खूब, बधाई.
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