हवाओं के आँचल पर खोल दें
ख्वाबों के पर.....
तरु-दल के स्पंदन से
आकांछाओं के जाल बुनें.....
झूम आयें गुलाब के गुच्छों पर
नर्म पत्तों की महक से
चलो, कुछ बात करें.......
आसमानी उजालों में, सोने की धूप
छुयें,मकरंद के पंखों से
कलियों को जगायें....
कि ऋतु-वसंत है.......
सूरज की पहली किरण से नहाकर
तुम......
और
गूँथकर चाँदनी को अपने बालों में
मैं......
चलो स्वागत करें.......
वसंतागमन पर स्वागत की ऐसी तैयारी देखकर वसंत भी इतराने लगेगा दीदी!!
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया!
बहुत सुन्दर कविता मृदुला जी । आप फॉन्ट को बडा करके पोस्ट करें तो पढने में ज्यादा आसानी होगी । फॉन्ट कुछ ज्यादा ही छोटा है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्द चित्र रचा है मृदुला जी ! वसंत का इतने इत्साह और उल्लास से यदि सभी स्वागत करें तो उपवन में उसका देर तक रुक जाना सुनिश्चित हो जायेगा ! है ना ? बहुत ही मनोहारी प्रस्तुति !
ReplyDeleteआने वाली बसंत पंचमी की अनगिन शुभकामनायें ! बहुत सुंदर शब्द चित्र !
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना..
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