Saturday, January 18, 2014

कुछ किताबें ,कुछ कलम......

कुछ किताबें ,कुछ कलम 
अखबार के पन्ने 
सुबह के…… 
एक मैं और एक 
दीवारों पे 
परछाईं मेरी है....... 

9 comments:

  1. अच्छा लगता है कभी...
    यूँ अकेले हो जाना !!
    :-)

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  2. और आप में बसा वो प्रभु जो रचना का सृजन करवाता है आपसे ऐसे ही पलों में ....!!
    सुंदर एहसास ....

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  3. अति-सुंदर प्रस्तुति...

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  4. सुंदर एहसास ....सुंदर प्रस्तुति...

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  5. क्या बात कही है दीदी!! बहुत मुख़्तसर सी मानीख़ेज़ नज़्म!!

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  6. कितना अच्छा लगता कभी खुद से खुद का हो जाना

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  7. ओर हर परछाईं में अतीत छिपा है

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  8. सुंदर शब्द चित्र

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