अंगारों सी हो चुभन-जलन
कुछ इधर-उधर की बातों में,
मेरा मन जब कुम्हला जाये
कुछ रातों में, कुछ प्रातों में,
तुम सघन विटप अमराई बन,
उस पल मुझपर छाया करना,
तुम हरित तृणों के अंकुश से,
भींगी आँखों को सहलाना ।
तुम रच-बसकर इन प्राणों में,
साँसों के मध्यम तारों में,
नख से लेकर शिख तक मेरे,
पायल से बिंदी तक मेरे,
नव किसलय की पंखुरियों सी
औ’ मंद हवा के झोंकों सी,
वर्षा में भींगे किसी कुसुम की,
हर्षित-कंपित आहट सी,
तुम सघन विटप अमराई बन,
उस पल मुझपर छाया करना
या हरित तृणों के अंकुश से,
भींगी आँखों को सहलाना ।
Friday, September 11, 2009
Thursday, September 10, 2009
बगल के मैदान में ......
बगल के मैदान में
सुबह से ही
गहमा-गहमी थी,
टेंट लग रहा था
दरियां बिछ रही थीं
कु्र्सियां
सज रही थीं ।
रह-रहकर
हेलो, हेलो, टेस्टिंग ....
माईक जांचा जा रहा था ।
पता चला
आनेवाले हैं
दूरसंचार के
विशिष्ट अधिकारी,
सोची, घर में
खाली ही बैठी हूँ,
चलूँ, कुछ
मैं भी देख लूँ,
कुछ मैं भी सुन लूँ ,
ठीक समय पर
अतिथि आये,
गणमान्य लोगों ने,
माले पहनाये,
कार्य-क्रम शुरू हुआ
कुछ धन्यवाद,
कुछ, अभिवादन हुआ,
अधिकारी ने
अपने भाषण में
कई मुद्दे उठाये,
तरक्की के
अनेकों नुस्खे बताये,
कहा, फाल्ट रेट
घटाइये,
विनम्रता से पेश आइये,
वन विंडो कानसेप्ट
अपनाइये और,
कस्टमर की सारी उलझने
एक ही खिड़की पर
सुलझाइये ।
तालियां बजी
प्रशंसा हुई
और दूसरे ही दिन,
अक्षरशः
पालन किया गया,
एक खिड़की छोड़कर
ताला भर दिया गया ।
हर मर्ज्ञ के लिये लोग
एक ही जगह
आने लगे,
सुबह से शाम तक
क्यू में बिताने लगे,
कुछ
उत्साही किस्म के लोग
खाने का डब्बा भी
साथ लाते थे,
आस-पास बैठकर
पिकनिक मनाते थे ।
मुझे भी
एक शिकायत
लिखवानी थी,
पहुँच गई 10 से पहले
लेकिन
तीन लोग
पहुँच चुके थे
मुझसे भी पहले ।
खिड़की खुली, दिखा
एक विनम्र चेहरा
याद आ गई,
विनम्रता से पेश आइये ।
मैं परसों भी आया था
लाईन में खड़े
पहले व्यक्ति ने कहा,
फोन खराब है मेरा
चार दिनों से…….
जवाब आया तत्काल,
चिन्ता न करे,
काम हो रहा है,
आप क्यू में हैं .
अब, दूसरे की बारी थी,
भाई साहब, मेरे फोन पर
काल आता हैं,
जाता नहीं
क्या हुआ कुछ
पता ही नहीं ,
आप जरा दिखवा दीजिये,
प्लीज्ञ, ठीक करा दीजिये,
ठीक है,
आप घर चलिये
मैं दिखवाता हूँ,
आप तसल्ली रखिये
कुछ करवाता हूँ ,
वैसे भी आपके फोन तो
आ ही रहे हैं
रही बात, करने की
सो
आपके सुविधा के लिये ही तो
हमने
जगह-जगह
टेलीफोन बूथ
खुलवाये हैं,
आप उपभोक्ता हैं
आपके साथ
हमारी
शुभकामनायें हैं.
तीसरा आदमी
आगे बढ़ा,
देखिये, हमारे फोन का
बिल बहुत ज्यादा है
हमने जब
किया ही नहीं
फिर
ये कौन सा कायदा है,
देखिये जनाब,
आपके मीटर पर
यही रीडींग आई है,
अब मीटर आदमी तो है नहीं
कि
कोई सुनवाई है ,
बिल भर दीजिये
बाद में देख लेंगे,
कुछ नहीं, हुआ तो
डिसकनेक्ट कर देंगे ,
हाँ बहन जी- अब आप बोलिये,
आपको क्या तकलीफ है
मैंने कहा,
मेरी समस्या
कुछ अलग किस्म की है,
टेलीफोन की घंटी
समय-असमय, घनघनाती है
रिसीवर उठाने पर,
प्लीज्ञ चेक द नंबर,
“यू हैव डायल्ड”
बार-बार, दोहराती है,
अब आप ही बताइये,
यह कौन सी सेवा
हमें उपलब्ध कराई है,
कि डायल किये बगैर
ऐसी सूचना, आई है ,
भई,
आपकी समस्या तो
मेरी समझ से
बाहर है ,
इसकी तो, मैं कहता हूँ
जड़ से पता लगाइये,
ऐसा कीजिये,
आप
संचार भवन जाइये,
वहाँ हर कमरा
वातानुकूलित है,
सारी खिड़कियाँ मिलेंगी बंद
लेकिन
वहीं करनी होगी
आपको जंग,
किसी एक खिड़की को
खुलवाइयेगा
और
अपना कम्प्लेन
वहीं दर्ज कराइयेगा ।
सुबह से ही
गहमा-गहमी थी,
टेंट लग रहा था
दरियां बिछ रही थीं
कु्र्सियां
सज रही थीं ।
रह-रहकर
हेलो, हेलो, टेस्टिंग ....
माईक जांचा जा रहा था ।
पता चला
आनेवाले हैं
दूरसंचार के
विशिष्ट अधिकारी,
सोची, घर में
खाली ही बैठी हूँ,
चलूँ, कुछ
मैं भी देख लूँ,
कुछ मैं भी सुन लूँ ,
ठीक समय पर
अतिथि आये,
गणमान्य लोगों ने,
माले पहनाये,
कार्य-क्रम शुरू हुआ
कुछ धन्यवाद,
कुछ, अभिवादन हुआ,
अधिकारी ने
अपने भाषण में
कई मुद्दे उठाये,
तरक्की के
अनेकों नुस्खे बताये,
कहा, फाल्ट रेट
घटाइये,
विनम्रता से पेश आइये,
वन विंडो कानसेप्ट
अपनाइये और,
कस्टमर की सारी उलझने
एक ही खिड़की पर
सुलझाइये ।
तालियां बजी
प्रशंसा हुई
और दूसरे ही दिन,
अक्षरशः
पालन किया गया,
एक खिड़की छोड़कर
ताला भर दिया गया ।
हर मर्ज्ञ के लिये लोग
एक ही जगह
आने लगे,
सुबह से शाम तक
क्यू में बिताने लगे,
कुछ
उत्साही किस्म के लोग
खाने का डब्बा भी
साथ लाते थे,
आस-पास बैठकर
पिकनिक मनाते थे ।
मुझे भी
एक शिकायत
लिखवानी थी,
पहुँच गई 10 से पहले
लेकिन
तीन लोग
पहुँच चुके थे
मुझसे भी पहले ।
खिड़की खुली, दिखा
एक विनम्र चेहरा
याद आ गई,
विनम्रता से पेश आइये ।
मैं परसों भी आया था
लाईन में खड़े
पहले व्यक्ति ने कहा,
फोन खराब है मेरा
चार दिनों से…….
जवाब आया तत्काल,
चिन्ता न करे,
काम हो रहा है,
आप क्यू में हैं .
अब, दूसरे की बारी थी,
भाई साहब, मेरे फोन पर
काल आता हैं,
जाता नहीं
क्या हुआ कुछ
पता ही नहीं ,
आप जरा दिखवा दीजिये,
प्लीज्ञ, ठीक करा दीजिये,
ठीक है,
आप घर चलिये
मैं दिखवाता हूँ,
आप तसल्ली रखिये
कुछ करवाता हूँ ,
वैसे भी आपके फोन तो
आ ही रहे हैं
रही बात, करने की
सो
आपके सुविधा के लिये ही तो
हमने
जगह-जगह
टेलीफोन बूथ
खुलवाये हैं,
आप उपभोक्ता हैं
आपके साथ
हमारी
शुभकामनायें हैं.
तीसरा आदमी
आगे बढ़ा,
देखिये, हमारे फोन का
बिल बहुत ज्यादा है
हमने जब
किया ही नहीं
फिर
ये कौन सा कायदा है,
देखिये जनाब,
आपके मीटर पर
यही रीडींग आई है,
अब मीटर आदमी तो है नहीं
कि
कोई सुनवाई है ,
बिल भर दीजिये
बाद में देख लेंगे,
कुछ नहीं, हुआ तो
डिसकनेक्ट कर देंगे ,
हाँ बहन जी- अब आप बोलिये,
आपको क्या तकलीफ है
मैंने कहा,
मेरी समस्या
कुछ अलग किस्म की है,
टेलीफोन की घंटी
समय-असमय, घनघनाती है
रिसीवर उठाने पर,
प्लीज्ञ चेक द नंबर,
“यू हैव डायल्ड”
बार-बार, दोहराती है,
अब आप ही बताइये,
यह कौन सी सेवा
हमें उपलब्ध कराई है,
कि डायल किये बगैर
ऐसी सूचना, आई है ,
भई,
आपकी समस्या तो
मेरी समझ से
बाहर है ,
इसकी तो, मैं कहता हूँ
जड़ से पता लगाइये,
ऐसा कीजिये,
आप
संचार भवन जाइये,
वहाँ हर कमरा
वातानुकूलित है,
सारी खिड़कियाँ मिलेंगी बंद
लेकिन
वहीं करनी होगी
आपको जंग,
किसी एक खिड़की को
खुलवाइयेगा
और
अपना कम्प्लेन
वहीं दर्ज कराइयेगा ।
Sunday, September 6, 2009
कि ऋतु वसंत है......
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें,
ऋतु वसंत का ।
आसमान की भुजाओं में
थमा दें,
पराग की झोली
और दूर-दूर तक उड़ायें
मौसम का गुलाल ।
रच ले हथेलियों पर
केसर की पखुड़ियाँ,
बाँध ले साँसों में
जवाकुसुम की
मिठास,
सज़ा ले सपनों में
गुलमोहर के चटकीले रंग,
बिखेर लें
कल्पनाओं में
जूही की कलियाँ
कि ऋतु वसंत है ....
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें ।
हवाओं के आँचल पर
खोल दें
ख्वाबों के पर
तरू-दल के स्पंदन से,
आकोंक्षाओं के
जाल बुनें ।
झूम आयें
गुलाब के गुच्छों पर
नर्म पत्तों की महक से
चलो
कुछ बात करें ।
आसमानी उजालों में
सोने की धूप
छूयें
मकरंद के पंखों से
कलियों को जगायें,
कि ऋतु वसंत है ....
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें ।
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें,
ऋतु वसंत का ।
आसमान की भुजाओं में
थमा दें,
पराग की झोली
और दूर-दूर तक उड़ायें
मौसम का गुलाल ।
रच ले हथेलियों पर
केसर की पखुड़ियाँ,
बाँध ले साँसों में
जवाकुसुम की
मिठास,
सज़ा ले सपनों में
गुलमोहर के चटकीले रंग,
बिखेर लें
कल्पनाओं में
जूही की कलियाँ
कि ऋतु वसंत है ....
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें ।
हवाओं के आँचल पर
खोल दें
ख्वाबों के पर
तरू-दल के स्पंदन से,
आकोंक्षाओं के
जाल बुनें ।
झूम आयें
गुलाब के गुच्छों पर
नर्म पत्तों की महक से
चलो
कुछ बात करें ।
आसमानी उजालों में
सोने की धूप
छूयें
मकरंद के पंखों से
कलियों को जगायें,
कि ऋतु वसंत है ....
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें ।
तुम हँसो ...
तुम हँसो
कि चाँद मुस्कुराये
तुम हँसो
कि आसमान गाये.
खुशबुयें फूल से उड़के
गलियों में आये,
पत्तों पे
शबनम की बूँदें
नहाये,
कलियों के दामन में
जुगनू चमक लें,
नज्मों की चौखट पे
लम्हे
ठहर लें,
खिड़की से आ
चाँदनी जगमगाये,
तुम हँसो
कि चाँद मुस्कुराये,
तुम हँसो
कि आसमान गाये,
हवाओं की कश्ती में
तारें समायें,
दिवारों पे लतरें
चढ़ी
गुनगुनाये,
रातों की पलकों में
सपने
दमक लें,
लहरें किनारों को
छूकर
चहक लें,
लताओं की पायल
मधुर खनखनाये,
तुम हँसो
कि चाँद मुस्कुराये,
तुम हँसो
कि आसमान गाये .
कि चाँद मुस्कुराये
तुम हँसो
कि आसमान गाये.
खुशबुयें फूल से उड़के
गलियों में आये,
पत्तों पे
शबनम की बूँदें
नहाये,
कलियों के दामन में
जुगनू चमक लें,
नज्मों की चौखट पे
लम्हे
ठहर लें,
खिड़की से आ
चाँदनी जगमगाये,
तुम हँसो
कि चाँद मुस्कुराये,
तुम हँसो
कि आसमान गाये,
हवाओं की कश्ती में
तारें समायें,
दिवारों पे लतरें
चढ़ी
गुनगुनाये,
रातों की पलकों में
सपने
दमक लें,
लहरें किनारों को
छूकर
चहक लें,
लताओं की पायल
मधुर खनखनाये,
तुम हँसो
कि चाँद मुस्कुराये,
तुम हँसो
कि आसमान गाये .
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