ज़माना चाहे जितना भी बदल गया हो,लोग-बाग कितने भी 'मॉडर्न' हो गये हों .......लेकिन शादी के बाद, बेटी के विदाई की भावुक कर देनेवाली नाज़ुक घड़ियाँ, जस-की-तस हैं.......वे कभी नहीं बदलेंगी......इसी भाव पर आधारित है ये कविता.......
दर्द का एक दौड़ सा
मन में समाता
जा रहा है.....और पलकें
इन दिनों,
तुमसे बिछड़ने की
करुण सी वेदना में,
भींगने जब-तब लगी है.......
काँपता,नींदों में मन
और धड़कनें
बढ़ने लगीं हैं,
विदा की घड़ियाँ
सिमटकर
अब हमें....छूने लगी हैं,
मन व्यथित-व्याकुल
समंदर में
लिपटता जा रहा है,
विदा का बादल उमड़
चारो दिशा
मंडरा रहा है.....
इन दिनों तुमसे विलग
होने की
निर्मम कल्पना,
प्रति-पल
विकल करने लगी है.....
और.....आँखों में उदासी
पिघलने
जब-तब लगी है.......
दर्द का एक दौड़ सा
मन में समाता
जा रहा है.....और पलकें
इन दिनों,
तुमसे बिछड़ने की
करुण सी वेदना में,
भींगने जब-तब लगी है.......
काँपता,नींदों में मन
और धड़कनें
बढ़ने लगीं हैं,
विदा की घड़ियाँ
सिमटकर
अब हमें....छूने लगी हैं,
मन व्यथित-व्याकुल
समंदर में
लिपटता जा रहा है,
विदा का बादल उमड़
चारो दिशा
मंडरा रहा है.....
इन दिनों तुमसे विलग
होने की
निर्मम कल्पना,
प्रति-पल
विकल करने लगी है.....
और.....आँखों में उदासी
पिघलने
जब-तब लगी है.......