Monday, March 31, 2014

साड़ी में फॉल लगाते हुये.......

साड़ी में फॉल लगाते हुये.......अचानक सोचने लगी…… 

सुई के धागों में 
उलझता-सुलझता हुआ 
मेरा मन,
सपनों के टाँके 
लगाता रहा....... 
और……मैं 
समय को 
दोनों हाथों से 
पकड़कर,
मिलाती रही…… 
जोड़ती रही…… 

Wednesday, March 26, 2014

आधुनिकता की दौड़ में.......

आधुनिकता की दौड़ में जब कुछ ऐसी-वैसी कहानियों का 'प्लाट' दिख जाता है तो बरबस मुझे मिथिलांचल से आये हुये एक लेखक की कही हुई बात याद आ जाती है....... " मैं जिस क्षेत्र और परिवेश से आया हूँ ,भूखा मर सकता हूँ ....... पर अपनी माँ-बहन के जवानी के किस्सों को लेकर कभी कहानी-उपन्यास नहीं लिख सकता …… और उनकी इस बात पर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था सभागार.......सबकी नज़रों में उनके लिए सम्मान का भाव था ……लेखक ऐसे भी होते हैं,पाठक ऐसे भी होते हैं……

Saturday, March 15, 2014

नीम के पत्ते यहाँ ........

नीम के पत्ते 
यहाँ 
दिन-रात गिरकर,
चैत के आने का हैं 
आह्वान करते, 
रात छोटी ,दोपहर 
लम्बी ज़रा होने लगी है....... 
पेड़ से इतने गिरे पत्ते 
कि दुबला हो गया है 
नीम,जो पहले 
घना था ,
टहनियों के बीच से 
दिखने लगा 
आकाश,
दुबला हो गया है 
नीम,जो पहले 
घना था ....... 
हवा में फैली 
मधुर,मीठी,वसंती 
महक 
अब जाने लगी है…… 
चैत की चंचल हवा में 
चपलता 
चलने लगी है....... 
क्यारियों से फूल पीले 
अब विदा होने लगे हैं 
धूप की नरमी पे 
गरमी का दखल 
बढ़ने लगा है……
सूर्य की किरणें सुबह 
जल्दी ज़रा 
आने लगी हैं,
रात में 
कुछ देर तक 
अब ,चाँद भी 
रहने लगा है....... 
   

Thursday, March 13, 2014

अभी-अभी साहित्य-अकादमी से लौटी......

अभी-अभी साहित्य-अकादमी से लौटी . नए कवियों के कविता -पाठ  में एक लड़की बोली.....इतिहास में कभी ये नहीं लिखा गया कि रावण का आकर्षक व्यक्तित्व और अपने प्रति आशक्ति देखकर सीता जी मन- ही- मन उससे प्रेम करने लगी थीं…… (प्रेम को वो काफी खोलकर,कुछ अशोभनीय शब्दों के माध्यम से बोली थी ). प्रोग्राम के बाद मैं उसे अपने पास बुलायी और पूछी कि तुम जो ये सीता जी के प्रेम वाली बात लिखी हो ,ये कहीं पढ़ी हो या तुम्हारी कल्पना है ?वो बोली , हाँ मेरी कल्पना है लेकिन इस बारे में काफी लिखा जा चुका है . मैं फिर पूछी कि तुमने ऐसी कोई बात कभी किसी ऐतिहासिक किताब में भी पढ़ी है क्योंकि मैं तो कभी नहीं पढ़ी हूँ....... इस पर उसका जबाब था, नहीं.……तो क्या ये तुम्हारे दिमाग की उपज है ?हाँ ,उसने मुस्कुराकर  जबाब दिया और मुझे आश्चर्य हुआ……कि उसके चेहरे पर गर्व का भाव था ....... और मैं, मेरी तो जैसे बोलती ही बंद हो गयी……