कतय गेल गणतंत्र-दिवस
झंडा क गीत
कतय सकुचायेल,
दृश्य सोहनगर,देखबैया
छथि
कतय नुकाएल.
लालकिला आर कुतुबमिनारक
के नापो ऊँचाई,
चिड़ियाघर जंतर-मंतर क
छूटल
आबा-जाही.
पिकनिक क पूरी-भुजिया
निमकी,दालमोट,
अचार,
कलाकंद,लड्डुक डिब्बा लय
मित्र,सकल परिवार.
कागज़ के छिपी-गिलास,
थर्मस में
भरि-भरि चाय,
दुई-चारि टा शतरंजी वा
चादर लिय
बिछाए.
ई सबहक दिन
बीति गेल, आब
'मॉल' आर 'मल्टीप्लेक्स',
दही-चुड़ा छथि मुंह
बिधुऔने,
घर -घर बैसल
'कॉर्न-फ्लेक्स'.
'कमपिऊटर' पीठी पर
लदने
मुठ्ठी में 'मोबाइल',
अपने में छथि
सब केओ बाझल
यैह नबका
'स्टाइल'....
दीदी, आपकी कविता कभी-कभी मुझे मेरी कमी का एहसास दिला देती है... काश मैं इस कविता पर मैथिली में टिप्पणी कर पाता.. एक पूरा युग आपने चित्रित कर दिया है इस कविता में... सच कहिये तो यही है लोकतंत्र से तंत्रलोक की कथा!!
ReplyDeleteनीक लागल.
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की राष्ट्रीय मतदाता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन (मेरी 50वीं बुलेटिन) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की शुभकामनायें और बधाईयां
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