अंगारों सी हो चुभन-जलन
कुछ इधर-उधर की बातों में,
मेरा मन जब कुम्हला जाये
कुछ रातों में, कुछ प्रातों में,
तुम सघन विटप अमराई बन,
उस पल मुझपर छाया करना,
तुम हरित तृणों के अंकुश से,
भींगी आँखों को सहलाना ।
तुम रच-बसकर इन प्राणों में,
साँसों के मध्यम तारों में,
नख से लेकर शिख तक मेरे,
पायल से बिंदी तक मेरे,
नव किसलय की पंखुरियों सी
औ’ मंद हवा के झोंकों सी,
वर्षा में भींगे किसी कुसुम की,
हर्षित-कंपित आहट सी,
तुम सघन विटप अमराई बन,
उस पल मुझपर छाया करना
या हरित तृणों के अंकुश से,
भींगी आँखों को सहलाना ।
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ReplyDeleteतुम सघन विटप अमराई बन
ReplyDeleteउस पल मुझ पर छाया करना
उत्तम भावनाओं को सुन्दरता से व्यक्त
करते हुए श्रेष्ठ विचार
बहुत ही अच्छी नज़्म ......
अभिवादन स्वीकारें .
चुभन कोई भी हो, वह अंगारों सा ही एहसास दिलाती है।
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ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
बहुत सुन्दर भाव भरे हैं इस रचना में
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना.
ReplyDeletenaseeb walo ko hi aisi nazdikiyan milti hain. sunder srijan.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
ReplyDeleteवास्तव में संगीता जी की हलचल का अनमोल मोती.
बहुत बहुत आभार आपका.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,मृदुला जी.
वाह ...बहुत बढिया।
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
ये चुभन भी सहलाती सी लगी ......
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti.
ReplyDeleteसुन्दर आभार
ReplyDeletesunder komal abhivyakti ...
ReplyDeleteबेहतरीन भावों से भरी सुंदर रचना,...बधाई
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में आपका इंतजार है,...
कोमल भावों से परिपूर्ण बहुत ही सुन्दर रचना ! हर शब्द मन पर अक्षुण्ण प्रभाव छोड़ता है ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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