एक नीरस
मुलाकात के लिए ,
कुछ उदास चेहरों के
साथ के लिए,
'शॉपिंग- मॉल' का आनंद ,
नई 'पिक्चर' का मज़ा और
लज्ज़तदार खाने का
ज़ायका
कोई क्यों बिगाड़े?
क्यों बिगाड़े
आधी,पौनी ,चौथाई
नपी-तुली,
एक ख़ूबसूरत शाम
या कह लीजिये,
एक टुकड़ा दिन .
कितना 'प्रेशियस' होता है
समय ,
हर जगह नहीं
लुटाया जाता,
यूँ ही नहीं
गंवाया जाता
कि चलो, फ़ोन घुमाकर
कुशल-छेम
ले लें,
सुनिश्चित कार्य-क्रम में
बाधा डालकर,
बातें कर लें और
बेमज़ा शब्दों के,
आदान-प्रदान में
खामखा,
दो-चार कीमती मिनट
कुछ सेकंड,
जाया कर लें .
वो भी तब,जब
स्नेह के बंधन,
गंभीरता के आवरण में,
अपना आस्तित्व
खोते जा रहें हों,
आत्मीयता कि जड़ें,
खाद-पानी के
अभाव में,
सूखने लगी हों और
विवेक.................
भौतिक चकाचौंध से
अभिभूत,
किंककर्तव्यविमूढ़,
वहीँ कहीं सो रहा हो .........
you have expressed the reality of life so beautifully . . . wonderfully written poem . . .
ReplyDeleteसार्थक सोच.......
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeletekahan se laati hain aisee soch.....:)
ReplyDeletelagta hai ek dum saamne chalchitra ke saamne mere se ghata ho.....:)
bahut sundar!
Mridula Ji,
ReplyDeleteNamaste,
स्नेह के बंधन,
गंभीरता के आवरण में,
अपना आस्तित्व
खोते जा रहें हों,
आत्मीयता कि जड़ें,
खाद-पानी के
अभाव में,
सूखने लगी हों और
विवेक.................
भौतिक चकाचौंध से
अभिभूत,
किंककर्तव्यविमूढ़,
वहीँ कहीं सो रहा हो .........
Bahut hi sunder dil ko chhu lenewali kavita likhi hai aapne.....
Surinder Ratti
Mumbai
जन साधारण की सोच को आपने सुंदर शब्दों में व्यक्त करके....महत्वपूर्ण बनाया है, धन्यवाद!
ReplyDeletesidhi c baat ko sunder rachna me dhaal diya.
ReplyDeleteshukriya
achchhi kahi. samay ka chehra saaf dikhta hai.
ReplyDeleteमेरे द्वारा एक नया लेख लिखा गया है .... मैं यहाँ नया हूँ ... चिटठा जगत में.... तो एक और बार मेरी कृति को पढ़ाने के लिए दुसरो के ब्लॉग का सहारा ले रहा हूँ ...हो सके तो माफ़ कीजियेगा .... एवं आपकी आलोचनात्मक टिप्पणियों से मेरे लेखन में सुधार अवश्य आयेगा इस आशा से ....
ReplyDeleteसुनहरी यादें
bahut sunder abhivykti....aaj kee manah sthitee ujagar karatee....
ReplyDeleteआत्मीयता कि जड़ें,
ReplyDeleteखाद-पानी के
अभाव में,
सूखने लगी हों ...
bahut hi sunder aur yatharth ko vyakt karti rachna..
sunder abhivykti......
ReplyDeleteमृदुला जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
खरी-खरी!
-------------------------
इट्स टफ टू बी ए बैचलर!
बहुत सुन्दर लिखा है |बहुत बहुत बधाई |मेरे ब्लॉग पर आने के लिए मैं आपकी आभारी हूं|इसी प्रकारप्रोत्साहित करती रहें |आभार
ReplyDeleteआशा
very true...bauhat accha likha hai....thank you for being on my blog.
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti...
ReplyDeleteMridula g bada achha likha hai aapne. Aajkal ye hi ho raha hai. APke blog par aaker achha lagaa.
ReplyDeleteआत्मीय जडें स्नेह के खाद पानी के अभाव में सूखती जा रही हैं । सच से रूबरू करवाती भावभीनी कविता ।
ReplyDeletebahut badhiya,
ReplyDeletemridula ji bahut dhanywad mere blog par aane ka..main aaj pahli baar aaya hoon,aapka blog shandar hai...ver nice
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteआज के समाज के मानव का
ReplyDeleteसटीक चित्रण ......
काव्य की बुनावट प्रभावशाली है
अभिवादन स्वीकारें
बेहतरीन रचना है...मेरी बधाई स्वीकार करें...और लिखती रहें...
ReplyDeleteनीरज
बहुत बढ़िया है...
ReplyDeletebahut badhiya...
ReplyDeleteगौरतलब पर आज की पोस्ट पढ़े ... "काम एक पेड़ की तरह होता है."
मृदुलाजी! आपकी कविता में हर तऱ्ह के भाव है, आधुनिकता भी झलकती है. बहुत ही सुंदर लिखान है आपका!
ReplyDeleteबड़ी ही निपुणता से आप ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
विवेक.................
ReplyDeleteभौतिक चकाचौंध से
अभिभूत,
किंककर्तव्यविमूढ़,
वहीँ कहीं सो रहा हो .......
सटीक अभिव्यक्ति
Aapki rachna ne sochne ko majboor kar diya..
ReplyDeleteबहुत उम्दा ...
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुती ||
lajvaab ..mridula ji.....sundar soch...
ReplyDelete