'मरुभूमि
कितना सूना लगता है.......'
अनायास ही
निकल गया था
मुंह से ,
जब 'आबू-धाबी' के
ऊपर से
'सूडान' जाने के लिए,
जहाज़ उड़ा था
और
नीचे 'सहारा डेज़र्ट'
उदास खड़ा था.
न कहीं पानी,
न कहीं हरियाली,
एकदम सन्नाटा
एकदम ख़ाली.
बात हो गयी थी
आई-गई,
बीस-बाईस साल में
मैं भी
भूल गई
पर
आज सुबह,
बाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .
उफ़! दर्द ही दर्द भर दिया आखिर मे।
ReplyDelete0ff kya likh gayee aap.......
ReplyDeletemarmik samvedana.......
आपको पता है मरुभूमि में अब उपवन खिलने लगे हैं, मैं दो-तीन साल पहले ही गयी थी, आपकी आँखों में भी सागर लहरा रहा है आत्मा का !
ReplyDeleteआज सुबह,
ReplyDeleteबाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .
मृदुला जी वक़्त की बात करूँ या आपकी लेखनी की ....
औरत रेगिस्तान की ख़ामोशी ही तो है .....
ओह , आँखों में मरुस्थल का दिखना ...उदास कर गया ..
ReplyDeleteनीचे 'सहारा डेज़र्ट'
ReplyDeleteउदास खड़ा था.
बाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',...
मन को व्यथित करते भाव
mridula ji main bhi awaak rah gaya...kaise aapne registaan ki khamoshi ko sabdo me samet liya:)
ReplyDelete... bhaavpoorn rachanaa ... prasanshaneey !!!
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमृदुला जी , बहुत ही गहरे मर्म भरे है इस कविता में ........बहुत खूब
ReplyDelete.
इंतजार
आज सुबह,
ReplyDeleteबाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .
...yun hi jindagi ke raah chalte chalte apne tak ko kitna bhool sa jaata hai insaan..
..bahut kuchh bolti aapki rachna swayam ko sochne par majboor karti hai...
आह! बेहद खुबसूरत ...... aapko padhna sukhad lag raha hai ... aapko badhai
ReplyDeleteआपकी कविता ऐसे लगी जैसे मरुस्थल में नखलिस्तान . आभार .
ReplyDelete'कितनी समानता है
ReplyDeleteमेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी
सोचने पर विवश करती कविता.
Kya gazab likhtee hain aap! Wah!
ReplyDeleteमेरी आँखों में',
ReplyDeleteख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई
मृदुला जी!
ReplyDeleteअबू धाबी के ऊपर सहारा रेगिस्तान?? भूगोल के जानने वाले और मेरे जैसे वहाँ से होकर लौटे लोग बता देनेगे कि यह तथ्यपरक भूल है..हाँ बिम्बों के हिसाब से बात ठीक है.
कविता में आपने जिस दर्द का वर्णन किया है वह स्पष्ट उभर कर आया है सामने..कम शब्दों में गहरा अर्थ लिए एक कविता!!
इक दर्द भरी कविता.. अच्छी लगी धन्यवाद
ReplyDeleteशुभ कामनाओं की कुछ हरियाली हमारी तरफ़ से आपको सादर प्रेषित ।
ReplyDeletesundar bhaav
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteवाकई ..सुन्दर अभिव्यक्ति .....
ReplyDeleteADARNIYA MRIDULAJI,
ReplyDeleteRACHNA KI AAKHIRI PANKTIYON NE KAVITA KA KAYAPALAT HI KAR DIYA..
ATI SUNDAR!
गहन भावों की भावुक अभिव्यक्ति...वाह !!!
ReplyDeleteमन मोह लिया...
mujhe bhi khamosh rahna hi sweekar hai in khamosh aankhon ke sang ...
ReplyDeleteवाह क्या बात है ... आपने बहुत सुन्दर तरीके से मन के रिक्तता के बारे में कहा है ...
ReplyDeleteGreat. U have Superbly compared eyes to the desert.
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteरेत और आँखों की समानता भेदती हुई सी...!!!
सोचने पर विवश करती कविता.
ReplyDeleteyour few words carry so much emotion
ReplyDeleteगहन भावों का संगम है इन शब्दों में ....।
ReplyDeleteगहरी उदासी लिए कविता अचानक सभी सुखों पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है ! आभार !
ReplyDeletevery touching . . . you have expressed your emotions so truly through these words . . .
ReplyDeleteकितनी समानता है
ReplyDeleteमेरी आँखों में
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी
कविता का मर्म अत्यंत गहन है।
आपके चिंतन को नमन।
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
ReplyDeleteआशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
कविता के भाव पक्ष ने मोहित कर दिया ........और हम हो गए आपके 75 वें समर्थक .....शुभकामनायें
ReplyDeletebahut sundar kavita
ReplyDeletebhaav dil ko chhoote hain
aabhaar
इस बिम्ब का बहुत सुन्दर प्रयोग है ।
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना!!
ReplyDeleteमृदुला जी,
ReplyDeleteवाह.....क्या बेहतरीन समानता है......बहुत खूब....सुन्दर पोस्ट|
व्यथा की बेहतरीन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआज सुबह,
ReplyDeleteबाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .
बहुत ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.मन को उद्वेलित कर देती है.
आँखों की ख़ामोशी से सहारा रेगिस्तान की याद ...
ReplyDeleteबस उदास कर गयी ....
आज सुबह,
ReplyDeleteबाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .
सोचने को विवश करती मर्मस्पर्शी एवं खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.