sundar kavita................. mam please visit my new blog-- www.aclickbysumeet.blogspot.com .....................and give your comments on the blog......tell how you feel to see it....thanks..
Raat bhar tha oos ka.. Padna nirantar hi raha.. Aur wo maidan main.. dubon ke upar dikh raha.. Motiyon si oos ki buoden.. Rahen dikhti jahan.. Koi jo chhu bhi le to.. Dikhte kadmon ke nishan..
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/ चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
us os ne itni baaten ki ... ki main nam hoti rahi, dubon se use uthaati rahi ... kuch aise hi ehsaas lage
ReplyDeletesundar kavita.................
ReplyDeletemam please visit my new blog-- www.aclickbysumeet.blogspot.com .....................and give your comments on the blog......tell how you feel to see it....thanks..
भीगे से एहसास में मैं भी भीग गयी.-
ReplyDeleteबहुत सुंदर कोमल रचना
ओस की बूँद के होश खो जायेंगे अपने बारे में ये कविता पढ़ के...
ReplyDeleteछोटा मगर अच्छा.
बहुत खुब सुरत जी धन्यवाद
ReplyDeleteHi..
ReplyDeleteRaat bhar tha oos ka..
Padna nirantar hi raha..
Aur wo maidan main..
dubon ke upar dikh raha..
Motiyon si oos ki buoden..
Rahen dikhti jahan..
Koi jo chhu bhi le to..
Dikhte kadmon ke nishan..
Sundar bhav..
Deepak..
andhere mein chamak utha hai chasm e nam koi
ReplyDeletejyun sitaron se tapki ho shabnam koi
kavita chhoti hai magar bhavpoorn hai.
ReplyDeleteबहुत खुब सुरत कविता| धन्यवाद|
ReplyDeletebahut sunder rachna
ReplyDelete..
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा आपने...बधाई.
ReplyDelete______________________________
'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !
सुंदर ओस के मोती सी कविता ।
ReplyDeleteकुछ हल्की फुल्की नहीं है, खली हे जिन्दगी
ReplyDeleteसांस सांस लड़खड़ायी, चली है जिन्दगी
स्त्री को नमन करती एक रचना http://rajey.blogspot.com/ पर
kuchh oss ki bunde shabd ban kar yahan bhi baras pade..:)
ReplyDeleteऔर.... कविता ओस पर बिखरी स्वप्निल किरणों की तरह चमक उठी !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति !
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
.
ReplyDeleteकी ओस इतना था गिरा कल रात भर .....
वाह ! मृदुला जी ...मन भीग गया इस सुन्दर अभिव्यक्ति से ..
.
वाह उम्दा .. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर कोमल एहसास
ReplyDelete....और उन ओस की बूदों पर ज्यों ही किरणें हुईं आशिक
ReplyDeleteशर्मा के छुप गयीं वे जाने किधर, अब रात को ही आयेंगी नजर...
दूब पर
ReplyDeleteशबनम की चादर
थी बिछी,
छींटे पड़े
पत्तों पे थे,
थी पंखुरी के
भाल पर,
मोती जड़ी
कि ओस इतना
था गिरा,
कल रात भर.........
बेहद ही उम्दा।
वाह! मुट्ठी में एक दुनिया को समेट लिया इस रचना ने.
ReplyDeleteis se zyaada short and sweet nazm maine kabhi nahin padhi....awwwesome...!!
ReplyDeleteएक सजीव चित्र मानस पटल पर उभर आया...
ReplyDelete... बहुत सुन्दर प्रस्तुति
अद्भुत - गागर में सागर - आभार
ReplyDeleteOs ki choti choti boondon ko jeevan se bhar diya hai in panktiyon ne ... lajawaab ...
ReplyDeleteओस इतना था गिरा कल रात भर .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteos ka asthai astitav magar phir bhi bhav bibhor kar deta kshnaik kshan me ,ati uttam .
ReplyDeleteदुनिया को समेट लिया इस रचना ने
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletelagta hai kahin ye os aapko bhi geela kar gayi.
ReplyDeleteशायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ