वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे आपका मित्र दिनेश पारीक
वाह कहूँ या आह? खुद की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं जो हाथ देते रहे सहारा उंगली बन कर वही हाथ अब मेरे काँधे का सहारा मांगते हैं. लिखती रहिएगा सादर प्रदीप www.neelsahib.blogspot.com
मॄदुला दी ,सुन्दर भाव जगाती पंक्तियां....
ReplyDeleteचुपचाप उद्वेलित कर देने वाली कविता... बहुत सुन्दर...
ReplyDeletemarm ko chhooti hui rachna ...
ReplyDeleteगहरे उतरते शब्दों के भाव .. ।
ReplyDeleteक्या खूब, बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteवृद्ध होती जा रही.......
असमर्थ ममता,
शुक्रिया।
मार्कण्ड दवे।
bahut sunder abhivykti.
ReplyDeletebahut achchi rachna . bahut achche bhav.
ReplyDeleteऔर मुझको वहम है
ReplyDeleteकि
उँगलियाँ मेरी
बड़ी अब,
हो गयीं हैं.
अब क्या कहूँ ....बहुत भावपूर्ण
वाह मॄदुला दी, जबाब नही इन चार पकंतियो का बहुत सुंदर,धन्यवाद
ReplyDeleteक्या वहम और क्या अहसास है.
ReplyDelete'उँगलियाँ मेरी बड़ी अब हो गयी हैं'
बहुत मृदुलता से अहसास कार्य है आपने मृदुला जी
मेरे ब्लॉग पर आयें,स्वागत है आपका.
गहन अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआदरणीय मॄदुला जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....बहुत भावपूर्ण ..
बेहतरीन अभिव्यक्ति मृदुला जी ।
ReplyDeletekhubsurat abhivyakti:)
ReplyDeleteबहुत सूक्ष्म भाव ! थोड़े से शब्दों में कविता बहुत कुछ कह जाती है !
ReplyDeleteबहुत कम शब्दों में बहुत सुंदर भाव...
ReplyDeleteमृदुला जी! बहुत सुन्दर.. दो पीढ़ियों को एक उंगली से जोड़ दिया आपने! कमाल है!
ReplyDeletewaah mridula ji
ReplyDeletekam shabdon me bahut gahri baat.
ReplyDeletebahut achcha.
Wonderful expressions ant that to in so few lines! Amazing.
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
गहरे भाव.
ReplyDeleteबहुत खूब ...लाजवाब ! शुभकामनायें आपके लिए !
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteगागर में सागर भर दिया मृदुला जी । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteवहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
आपका मित्र दिनेश पारीक
बहुत सुन्दर। समय बीतता है हम बडे होते हैं पर बडे होते नहीं हैं।
ReplyDeleteहकीकत बयान की है
ReplyDeleteवाह कहूँ या आह?
ReplyDeleteखुद की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं
जो हाथ देते रहे सहारा उंगली बन कर
वही हाथ अब मेरे काँधे का सहारा मांगते हैं.
लिखती रहिएगा
सादर
प्रदीप www.neelsahib.blogspot.com