तुम्हारी ऊँची-ऊँची
आसमानी
उड़ानों के नीचे,
छोटी-छोटी
मेरी
रोज़मर्रा कि खुशियाँ
कुचल जातीं हैं......
उन कुचली हुई
खुशियों को
जोड़-जोड़कर,
मिला-मिलIकर,
तुम्हारे
लम्बे-लम्बे
प्रवास में,
जब,दिन का कोई
अंत
नहीं दीखता है,
मैं
फूलों से कहती हूँ.....
तू क्यों खिलता है?
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteछोटी लेकिन सुंदर कविता... मिला-मिलाकर में मिलाकार हो गया है। कृपया ठीक कर लें..
ReplyDeleteगहन सोच
ReplyDeleteदिल को छूती हुई पंक्तियाँ ... दिल को सीधे से लिख दिया ...
ReplyDeleteएक सुन्दर कविता..!
ReplyDeleteगहन सोच के साथ सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसुविधाभोगी व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य।
ReplyDeleteKayi kaliyan phool nahee ban pati....kaliyon ke haath me kahan hai phool ban jana ya nahee?
ReplyDeleteआज खड़े होकर तालियाँ बजाने को जी चाहता है.. बहुत ही खूबसूरत कविता.. बहुत सरल शब्दों में बहुत ही गहरी बात!!
ReplyDeleteअच्छी पर छोटी कविता |
ReplyDeleteआशा
परेशान हूँ इस स्पैम से.. निकालिए मेरा कमेन्ट..प्लीज़!!
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteमैं
ReplyDeleteफूलों से कहती हूँ.....
तू क्यों खिलता है?
gazab ki shikayat
कल 31/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bahut sundar bhav.......
ReplyDeleteदिल को स्पर्स करती भाव पूर्ण रचना,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST ...: जख्म,,,
सुंदर..!!!
ReplyDeletesab apna apna kaam kar rahe hain to fool kyu n kare.....? kya aap apni khushiyon ko kuchalne se bacha paati hai.....? agar haan to aap bhi riverse counting kijiye.
ReplyDeletewow...bauhat accha!!
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
ye dil tum bin kahin lagata nahin ...ham kya karen ....
ReplyDeletekuchh nahin to phool se hii shikayat karen ...
koi to sune ...
sundar bhaav ...
oh! kya baat hai...behad khubsurat...
ReplyDelete