हर कोई
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का .......
उठने का ,बैठने का ,
जागने का ,
सोने का ,हँसने का ,
रोने का,
खाने का और पीने का।
कभी मन से,कभी
बेमन से ,
कभी जाने, कभी
अनजाने,
रोज़मर्रा की क्रिया
प्रक्रिया से
बंधा हुआ........
रूठते ,मनाते ,
बोलते ,न बोलते ,
लुढ़कते ,
फिसलते ,गिरते ,
संभलते ,
घूमता रहता है
पहिये की तरह ,
वृत्ताकार गोलाई पर ,
घड़ी की सूईयों को
ताकता हुआ ,
घटती -बढ़ती क्षमताओं को
नापता हुआ,
गति की सीमाओं को
आँकता हुआ.......... और
हर वख्त
कुछ चाहता हुआ
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का.........
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का .......
उठने का ,बैठने का ,
जागने का ,
सोने का ,हँसने का ,
रोने का,
खाने का और पीने का।
कभी मन से,कभी
बेमन से ,
कभी जाने, कभी
अनजाने,
रोज़मर्रा की क्रिया
प्रक्रिया से
बंधा हुआ........
रूठते ,मनाते ,
बोलते ,न बोलते ,
लुढ़कते ,
फिसलते ,गिरते ,
संभलते ,
घूमता रहता है
पहिये की तरह ,
वृत्ताकार गोलाई पर ,
घड़ी की सूईयों को
ताकता हुआ ,
घटती -बढ़ती क्षमताओं को
नापता हुआ,
गति की सीमाओं को
आँकता हुआ.......... और
हर वख्त
कुछ चाहता हुआ
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का.........
sabke apne apne tareeke
ReplyDeleterone ke, hasne ke
jeene ke........:)
घूमता रहता है
ReplyDeleteपहिये की तरह ,
वृत्ताकार गोलाई पर ,
घड़ी की सूईयों को
ताकता हुआ ,
घटती -बढ़ती क्षमताओं को
नापता हुआ,
गति की सीमाओं को
आँकता हुआ.......... और
हर वख्त
कुछ चाहता हुआ
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का.........
सत्य को उद्घाटित करती प्रवाह मयी रचना
घड़ी की सूईयों को
ReplyDeleteताकता हुआ ,
घटती -बढ़ती क्षमताओं को
नापता हुआ,
गति की सीमाओं को
आँकता हुआ.......... और
हर वख्त
कुछ चाहता हुआ
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का.........,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रभावी पंक्तियाँ
बेहतरीन प्रस्तुति,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता
तरीका न भी हो तो जी ही लेता है उसी तरीके में ...
ReplyDeleteक्या किया जाए...जीना तो है ही....
ReplyDeleteचाहे जैसे...
अनु
क्या करें हर हाल में जीना तो पड़ता ही है. जो जीना है जिंदगी तो बहाने भी ढूंढने होंगे. सुन्दर रचना है
ReplyDeleteजीने के लिए कुछ तो करना ही है न..
ReplyDeleteवृत्ताकार गोलाई पर ,
ReplyDeleteघड़ी की सूईयों को
ताकता हुआ ,
घटती -बढ़ती क्षमताओं को
नापता हुआ,
गति की सीमाओं को
आँकता हुआ.......... और
हर वख्त
कुछ चाहता हुआ
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का.........
shankar mahadewan ke geet aisa lagata jaise barakha ka badal ........ki yaad aa gai . एक प्रवाह एक गति लिए रचना जीवन की बारीकी लिए .
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteयह कविता ही है ना???????? मुझे लगा कि कोई पहाड़ी झरना फूट पड़ा है और भागता जा रहा है!! कमाल का प्रवाह!! शानदार रचना!!
ReplyDeleteजीने का तरीक़ा जो अपने हिसाब से ढूंढ़ लेता है, वह ही सफल होता है जीवन की जंग में।
ReplyDeletesahi baat..jina isi ka naam hae
ReplyDeleteएकदम सही बात है। अच्छे विचार।
ReplyDeleteजीवन का सा प्रवाह है इस कविता में..
ReplyDeleteवाह ! सुन्दर रचना'
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ... सार्थकता लिए सशक्त लेखन ...आभार
ReplyDeleteरास्ते तो अलग ही होंगे, मकसद केवल एक ही हो सकता है,सम्पूर्णता.
ReplyDeleteभावों को बखूबी समेटा है.
नापता हुआ,
ReplyDeleteगति की सीमाओं को
आँकता हुआ.......... और
हर वख्त
कुछ चाहता हुआ
एक तरीका ढूँढ लेता है
जीने का.........बिल्कुल सही कहा आपने
Recent Post…..नकाब
पर आपका स्वगत है
जहां चाह वहां राह
ReplyDeleteबढ़िया .....
ReplyDeleteहर कोई ढूढ ही लेता है तरीका जीने का अपने लिये । सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteBahut khub
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