Saturday, May 31, 2014

निकले हुये हैं .......

निकले हुये हैं 
भयावह सर्पों के 
समूह 
तफरीह के लिये……. 
ऐसे में,कंघी 
पाउडर,लिपस्टिक 
रखो न रखो.…… 
सतर्क,सशक्त,सुदृढ़ 
साहस....
ज़रूर रख लेना,
पर्स में,
घर से निकलते हुये.......

Friday, May 30, 2014

एक झटके से उठी कुर्सी से......

एक झटके से उठी 
कुर्सी से, कोई नस खिंचा 
झटपट कमर का.……. और 
'मसल पुल' हो गया है.…… 
कभी सीधी,कभी टेढ़ी 
कभी झुककर  
चल रही हूँ,
दर्द से बातें कभी 
बिस्तर पे लेटे  
कर रही हूँ.……
आये हो अच्छे समय से 
है नहीं जाना कहीं 
हमको, 
नहीं आना किसीको ……
ख़्याल मैं रक्खूँगी 
सहलाकर ,लगाकर 'बाम',
करवट मैं 
तुम्हारे ही कहे 
अनुसार लूँगी.....
खाऊँगी ,पियूँगी 
मन भरकर, 
तुम्हारे साथ ही 
गप-शप करूँगी ,
धूप की गर्मी से 
तकिया को गरम कर 
सेक दूँगी……. 
मित्र ,रूककर 
एक-दो दिन ही 
चले जाना.....
कि मैं भी 
कौन बैठी हूँ यहाँ 
हर रोज़ खाली.....

Wednesday, May 21, 2014

सन छियासठ में .......

इसे छोड़ दूं तो वो आती हैं .……उसे छोड़ दूं तो ये आती हैं  ,ये यादें भी अजीब हैं.……. पीछा ही नहीं छोड़तीं....... 

सन छियासठ में 
'सिलीगुड़ी' में,कितने कम में 
घर चलाते थे,
एक रूपये का पाव 
मछली खाते थे.……. 
तब दिल्ली कितना 
खुशगवार था,
कलकत्ते में कितना 
प्यार था,
इंगलैंड की सुबह में 
कितना लावण्य था,
कन्याकुमारी की शाम में 
कितना सौन्दर्य था.……. 
कितना रोमैंटिक था 
नील नदी का किनारा 
रातों में,
मज़ा कितना रहता था 
इंडो-सूडान क्लब की 
बातों में.……. 
हाँ-हाँ.…
वो आसनसोल में.…
ऑफिस-कम-रेसीडेंस था,
ऑफिस और घर का 
अगल-बगल 
इन्ट्रेंस था.…….