बची हुई माँ
अचानक
कितनी निस्तेज
लगने लगती है.
एक नए प्रतिबिम्ब मे
तब्दील हुई
खुद को ही नहीं
पहचानती है,
बेरंग आँखों की
उदासी से
उद्वेलित मन को
बांधती है,
सुबह-शाम की
उँगलियाँ थामें
अपने-आप ही
संभलती है,
तूफान के प्रकोप को
समेटती हुई
रुक- रुक कर
चलती है.
सूनेपन को
जाने किस ताकत से
हटाती है,
यादों के प्रसून-वन में
हँसती-मुस्कुराती है,
भावनाओं के साथ
युद्ध करते हुए,
आँसुओं को
पी जाती है और
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
माँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.
bahut khub
ReplyDeletebahut gahre vichar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
ati sunder.
ReplyDeleteअश्रुपूरित नेत्रों से यह टिप्पणी आपके चरणों में अर्पित कर रहा हूँ... माँएँ कभी कमज़ोर नहीं होतीं... जो एक मज़बूत राष्ट्र को जन्म दे वह कम्ज़ोर कैसे हो सकती है... तभी तो किसी ने कहा था कि तुम मुझे एक अच्छी माँ दो,तुम्हें मैं एक अच्छा राष्ट्र दूँगा...
ReplyDeleteमृदुला जी ! रचना पढकर आँखों में आंसू आ गये ! पिता के बाद माँ बचती ही कहाँ है ! मजी हुई कविता सम्वेदना छोड़ जाती है ! आभार !
ReplyDeleteIt is hard to find words which can be suitable for a comment. It is beautiful as well as full of grief. Difficult to read without getting tears in my eyes.
ReplyDeleteभावनाओं की उथल पुथल मचा देने वाली कविता । पिता के बाद की मां का सही वर्णन किया है आपने । पर यह ताकत स्त्री में ही होती है कि तूफान के बाद भी वह सम्हल जाती है और सम्हाल भी लेती है ।
ReplyDeleteWatched Mother India very recently.
ReplyDeleteThe poem punctuates the struggle depicted in the movie.
Great Work!
Regards!
कविता का शीर्षक, शब्द और भाव बेजोड़ हैं - बधाई तथा ऐसी सोच के लिए आभार.
ReplyDeleteसमेटती हुई
ReplyDeleteरुक- रुक कर
चलती है.
सूनेपन को
जाने किस ताकत से
हटाती है,
नमन है उस माँ को .....!!
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
ReplyDeleteमाँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.
माँ खंड खंड होते हुए भी कमजोर नहीं होती
बहुत सुन्दर एहसास
पतिके बिना कितनी अधूरी हो जाती है पर एक माँ की तरह वह
ReplyDeleteबहुत सशक्त हो कर उभरती है |आपने बहुत सही चित्रण किया है |
सार्थक कविता के लिए बधाई |
आशा
Mai pahli baar aayi hun aapke blogpe...abhibhoot hun!
ReplyDeleteमाँ आखिर माँ है
ReplyDeleteउसे ईश्वर ने मजबूती दी है
तभी यह जगत स्थित है।
बहुत ही अच्छी कविता
आभार
mridula ji maan ki mahima anant hai...aap to swayam ek naari hain aapse achcha bhala kaun samjhega....bahut sundar
ReplyDeleteकुछ कहना तो चाहता हूँ, पर कह नहीं पा रहा।
ReplyDeleteबस आप समझ लीजिए, अनकहा…
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ReplyDeleteइसे पढ़के मिला जो सुख उसे मैं कह नहीं सकता।
बिना बांधे, सही तारीफ के पुल रह नहीं सकता।
हृदयस्पर्शी अनुभूति......बधाई स्वीकारें।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
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आप इतनी यश प्राप्त कवयित्री हैं ... आपके कलम से अच्छी और परिपक्व कविता तो आएँगी ही ... जो किसी भी तारीफ़ के मोहताज नहीं होंगी ... पर फिर भी यह कहना चाहूँगा की सच में आपके कलम में कमाल का हुनर है ... माँ पर लिखी यह कविता बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी कविता है ... नारी ह्रदय का अत्यंत सुन्दर वर्णन है ...
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग में आये तथा मेरी कविता को पसंद किये यह मेरा अहोभाग्य है ... आपका हमेशा स्वागत है !
हृदयस्पर्शी अनुभूति
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें।
माँ पर लिखी मेरी एक मर्मस्पर्शी कविता मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ें "आज भी "
http://rachanaravindra.blogspot.com/2009/11/blog-post_16.html
पिता के बाद.........
ReplyDeleteबची हुई माँ
अचानक
कितनी निस्तेज
लगने लगती है,
एक नए प्रतिबिम्ब में
तब्दील हुई
खुद को ही नहीं
पहचानती है,
बेरंग आँखों की
उदासी से
उद्वेलित मन को
बांधती है,
सुबह-शाम की
उँगलियाँ थामें
अपने-आप ही
संभलती है,
तूफान के प्रकोप को
समेटती हुई
रुक- रुक कर
चलती है.
सूनेपन को
जाने किस ताकत से
हटाती है,
यादों के प्रसून-वन में
हँसती-मुस्कुराती है,
भावनाओं के साथ
युद्ध करते हुए,
आँसुओं को
पी जाती है और
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
माँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.
itni achchhi rachna ko aise publish karti to jyada achchha lagta mere khyaal se.
आपकी यह प्रस्तुति दिल को छू गई।
ReplyDeleteमृदुला जी, प्रणाम,
ReplyDeleteआपकी कई रचनाए आज पढ़ी, पढ़ते पढ़ते एक दूसरी दुनिया में खो सा गया मैं! भावनाओं के अतिरेक में आँखें नम भी हुई, दिल को कहीं गहरे तक छु कर लौटती है आपकी रचनाएँ, कमाल कि रचनाएँ हैं आपकी, मैं अब तक आपके ब्लॉग से दूर रहा उसका अफ़सोस है !
सुबह-शाम की
ReplyDeleteउँगलियाँ थामें
अपने-आप ही
संभलती है,
तूफान के प्रकोप को
.............bahut marmik rachna.
heart touching lines.....bahut bahut sahi tasveer kichi hai apne.....hame itni sundar rachna padhane kay liye dhanyavad
ReplyDeleteBeautifully crafted emotions....beyond words!
ReplyDeleteTippani me kya likhun.Bas mahsoos kar sakti hoon.shubkamnayen.
ReplyDeleteBahut ache... wonderful!
ReplyDeleteHridya sparshi rachna!!
ReplyDeleteMridula jee!! Sach kahun to vevahik sambandh ka sab se jaruri aur sabse aham hissa to proddh awastha me hi hota hai.........hamne dekha hai, kaise dada jee meree maiya (dadi) ka khyal rakhte the........!!
Rachna ke liye to kuchh kah hi nahi sakta, shabd nahi hain............:)
God bless mam!!
bahut hi samvedan sheel rachna.isee liye to vo maa kahalati hain.jo har paristhiti se samjhouta karti jati hai.
ReplyDeletepoonam
कविता का शीर्षक, शब्द और भाव बेजोड़ हैं - बधाई तथा ऐसी सोच के लिए आभार.
ReplyDeleteमृदुला जी बहुत अच्छी रचना ।
ReplyDeleteआप का मेरे ब्लांक पर आने का बहुत बहुत धन्यवाद ।
"आँसुओं को
ReplyDeleteपी जाती है और
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
माँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है. "
IN PANKTIYON NE DIL CHU LIYA!!
BEHAD SUNDAR RACHNA......
प्रशंसनीय ।
ReplyDeletedil ko choo lene waali rachna.....
ReplyDeletebahut sundar....
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mere blog mein is baar...
जाने क्यूँ उदास है मन....
jaroora aayein
regards
http://i555.blogspot.com/
Dost, aaj pehli baar aapke page par aaye to laga itne dino mein kitna kuch miss kar diye...ek ek shabd jaise canvas pe laga ek ek stroke hai jo puri tasveer bana deta hai aapki. best regards, ani
ReplyDelete'कभी कमज़ोर दिखनेवाली
ReplyDeleteमाँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.'
- माँ कभी कमजोर नहीं होती.ऐसा दिख जरूर सकती है.
'कभी कमज़ोर दिखनेवाली
ReplyDeleteमाँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.'
- माँ कभी कमजोर नहीं होती.ऐसा दिख जरूर सकती है.
bahut khub rachna.......abhar
ReplyDeletemem namaskaar , aapney merey blog main visit kiya iskey liye aapka bahut-bahut dhanyvad,asha hai marg darshan krtey rahengey.
ReplyDeleteBahut hee dard bhra sach...
ReplyDeleteJee han bilkul 100% sach....
Aap ne us maa kee baat kee hai jo pita ke jane ke baad ...bachon ko ehsas tak nahee hone detee ke us ko bhee koee dukh hai...bas chtaan ban jatee hai ....bachon kee har mushkil ke aage...
...बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी कविता
ReplyDeleteसूनेपन को
ReplyDeleteजाने किस ताकत से
हटाती है,
यादों के प्रसून-वन में
हँसती-मुस्कुराती है,
भावनाओं के साथ
युद्ध करते हुए,
आँसुओं को
पी जाती है और
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
माँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती
सच कहा है आपने----यही तो मां हैं---कविता पढ़ते पढ़ते मां के साथ बातें करने लगा। इतनी भावपूर्ण कविता के लिये हार्दिक शुभकामनायें।
हृदयस्पर्शी अनुभूति
ReplyDeletebauhat sundar...
ReplyDeleteबची हुई माँ !!!!
ReplyDeleteअद्भुत .
'बची हुई ' में जो अभिव्यंजना है वह अद्वितीय है.
नमन . बार-बार नमन .
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
ReplyDeleteमाँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती-
आपकी ये पंक्तियाँ संघर्षों में लड़ने की ताकत देती हैं।
-रामेश्वर काम्बोज
कमजोर दिखने वाली माँ मजबूत दिखने लगी है ...बहुत भावप्रवण रचना ..
ReplyDeleteदिल को छूने वाली रचना...मैंने भी अपनी मां को ऐसे ही पाया...
ReplyDeleteपर हड्डियों के ढांचे में...मन से मजबूत...
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.