नहीं चाहती ..........
तुम्हारी तस्वीर को
माला पहना दूं ,
अगरबत्ती दिखा दूं ,
फूल चढ़ा दूं और
जो दूरी............
तुम्हारे-हमारे बीच
दुर्भाग्यवश,
बन गयी है,
उसे और बढ़ा दूं.
नहीं चाहती.............
नियम-कानून से
बना-बनाकर
अनबूझ पहेलियाँ,
हल निकालूँ ,
सुनी-सुनायी
जहाँ-तहां की,
जिनकी-तिनकी,
मन में पालूँ
और
सोचने,चाहने,
याद करने की
अभ्यस्त
जिस छवि की,
उसे ही
बदल डालूँ.
प्रहार कर
अपनी छमता पर,
व्यथा को,
दिखाना नहीं चाहती........
यादों को सहेजने की,
कोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती........
सचमुच ...आस ही तो जीने का विश्वास और सहारा देती है.
ReplyDeleteपसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है
ReplyDeleteमन की व्यथा की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..लाज़वाब
ReplyDeletebehtaren kavita badhai mridulaji
ReplyDeleteman ki vyatha ko darshane ka umda tareeka.....:)
ReplyDeleteनहीं चाहती तुम्हारी तस्वीर को माला पहना दूं ,अगरबत्ती दिखा दूं ,
ReplyDeleteफूल चढ़ा दूं और जो दूरी तुम्हारे-हमारे बीच दुर्भाग्यवश बन गयी है उसे और बढ़ा दूं.नहीं चाहती.............
सुन्दर अभिव्यक्ति............
अपनी छमता पर,
ReplyDeleteव्यथा को,
दिखाना नहीं चाहती........
यादों को सहेजने की,
कोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती........
Behad sashakt rachana! Gazab kar diya!
नहीं चाहती ..........
ReplyDeleteतुम्हारी तस्वीर को
माला पहना दूं ,
अगरबत्ती दिखा दूं ,
फूल चढ़ा दूं ...
भावपूर्ण रचना !
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क्यूँ झगडा होता है ?
यादें शायद मृत हो नहीं पाती। दिल के किसी न किसी कोने में दुबक कर रहती हैं और वातावरण मिलने पर उछलकर बाहर आ जाती हैं।
ReplyDeleteयादों को सहेजने की,
ReplyDeleteकोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती..
ये सच है यादें जिन्दा रहती हैं ... साथ रहती हैं ... उनसे दुःख लो या सुख ....
सहज लेना ही अचा होता है .. अच्छी रचना है ..
स्मृति की एक नई परिभाषा... एक अद्भुत और नूतन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteजीवन का सच्चा विश्राम आत्म अनुभूति में है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ReplyDeleteविचार-नाकमयाबी
मन में बसी यादें कभी नहीं मिटती ..सुन्दर अभ्व्यक्ति
ReplyDeleteअपनी छमता पर,
ReplyDeleteव्यथा को,
दिखाना नहीं चाहती........
यादों को सहेजने की,
कोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती...
बिल्कुल जुदा...और प्रभावशाली अंदाज़.
JIvan ke chhote-choote aham hame apno se to dur kar dete hai lekin jivan ki sandhya bela me wahi rishte phir yaad ane lagate hain-this is universal truth and it cannot be negated at any point of life.So, please look at the brighter side of your life and make changes in your mental concept.Thans for your compressed emotional expressionon your blog. Good Morning.
ReplyDeleteअलग अंदाज!
ReplyDeleteप्रहार कर अपनी क्षमता पर ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .... एक नया फलसफ़ा यादों के नाम ....
व्यथा को,
ReplyDeleteदिखाना नहीं चाहती........
यादों को सहेजने की,
कोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती........
बहुत सुंदर अंदाज़ में बयां किये आपने अपने भाव...... बहुत अच्छी रचना ...प्रभावशाली अंदाज़
oupcharikta kee deewar ko dhha vastvikta kee rah le jane walee rachana........bahut hee sunder abhivykti ......
ReplyDeleteजो दूरी तुम्हारे-मेरे बीच बन गयी है उसे और बढ़ा दूं... गजब की अभिव्यक्ति है, भावनाओं से परिपूर्ण।
ReplyDeletebahut achche se feelings kavita mein aaya hai. it is so true.
ReplyDeletesundar bhav pravan abhivyakti, abhar
ReplyDeleteवेदना के साथ ही ,दृढता मनोभावो की!
ReplyDeleteसमय और भाग्य को प्रेम की ताकत का अहसास कराती मन को छूती रचना!
mn ke hare har hai
ReplyDeletemn ke jeete jeet.
aapki soch ki mjbooti hi aapka sbse bda smbl hai jise aapne shbdbdh kiya hai .aapko our bhi pdna chahungi .
जो दूरी............
ReplyDeleteतुम्हारे-हमारे बीच
दुर्भाग्यवश,
बन गयी है,
उसे और बढ़ा दूं.
नहीं चाहती.............
गजब की अभिव्यक्ति है, भावनाओं से परिपूर्ण।
आपकी कविता पढ़ कर आज मुझे भी मेरे प्रश्न का जवाब मिल गया की एक तस्वीर पर मेरा भी दिल नहीं करता की उस पर फूल माला चढाऊ...लेकिन ऐसा क्यों था , इसका जवाब आज तक खुद को ही नहीं दे पाई थी.
ReplyDeleteसच कहा आपने हाँ यही कुछ एहसास होते हैं.
har lihaaj se behtareen hai...bahut umdaa
ReplyDeletehttp://pyasasajal.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
dard mere gaan ban ja ...
ReplyDeletejine ka ek aur nazariyaa...
सही कहा आपने तस्वीर के सामने अगरबत्ती जला कर, हार पहना करयादों को सहेजने की पध्दति अपनाना दूरियां बढाना है । यादें तो सहज स्फूर्त होती हैं बिना दस्तक दिये चली आती हैं ।
ReplyDeleteयादों को सहेजने की,
ReplyDeleteकोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती........
वाह! क्या नया अन्दाज़ है कहने का…………दिल को छू गया।
सुंदर रचना, सुंदर प्रस्तुति...धन्यवाद! ...दिपावली की शुभ-कामनाएं!
ReplyDeleteसीधे ह्र्दय पर असर करती रचना । दीपावली की शुभकामनायें
ReplyDeleteएक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
मृदुला जी,
ReplyDeleteनमस्ते!
सुपर्ब!
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteदिवाली की शुभकामनाये.
इसी तरह आप से बात करूंगा
ReplyDeleteमुलाक़ात आप से जरूर करूंगा
आप
मेरे परिवार के सदस्य
लगते हैं
अब लगता नहीं कभी
मिले नहीं है
आपने भरपूर स्नेह और
सम्मान दिया
हृदय को मेरे झकझोर दिया
दीपावली को यादगार बना दिया
लेखन वर्ष की पहली दीवाली को
बिना दीयों के रोशन कर दिया
बिना पटाखों के दिल में
धमाका कर दिया
ऐसी दीपावली सब की हो
घर परिवार में अमन हो
निरंतर दुआ यही करूंगा
अब वर्ष दर वर्ष जरिये कलम
मुलाक़ात करूंगा
इसी तरह आप से
बात करूंगा
मुलाक़ात आप से
जरूर करूंगा
01-11-2010
इस ज्योति पर्व का उजास
ReplyDeleteजगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
बहुत सुन्दर रचना है !
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को एक सुन्दर, शांतिमय और सुरक्षित दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें !
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
ReplyDeleteमैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteदीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ... ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteशुभकामनायें!
a very good poem indeed...यादों को
ReplyDeleteसहेजने की,
कोई और पद्धति,
अपनाना नहीं चाहती........
very apt picturesqueness of emotions!
bahut hi achcha aur sahi likhe ho . . . this is you . . .
ReplyDeleteयादों को सहेजने की कोई और पद्धति होती भी नहीं शायद
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