मिथिला कि मिट्टी में
मधु-श्रावणी(त्योहार)की
हँसी-मजाक और मिठास,
घोलते-घोलते,
कब इस भाषा में
लिखने लगी
पता ही नहीं चला......
घर-गृहस्थी की सरदर्दी में
दही,चिवड़ा और बैगन के भार से
प्रभावित,
जमाते,कूटते,तौलते
किस समय कागज़-कलम
सर पर सवार हो गया
पता ही नहीं चला.......
समदाउनी(बेटी की विदाई के समय सीख देनेवाला गीत)के गीत
सुनते-सुनते
विद्यापति की कविता
पढ़ते-पढ़ते,
नौकर के न आने पर
चूल्हा खुद जलाकर,
अदौड़ी,तिलोड़ी,दनौड़ी
पारकर(बनाकर)
कब कविता पारने(बनाने)लगी
पता ही नहीं चला........
सावन-भादो की टिप-टिप से
छुपकर,
बच्चों को गोद में
बैठाकर,
'गोनू झा'(मिथिला के एक ऐसे चरित्र जिनकी हास्य और ज्ञान की कथाएं मशहूर हैं)की बातों से
सबको हँसाकर,
पीतल के 'कजरौटा'(काजल सेकने की खास करछीनुमा चीज़)में
काजल सेक कर
कब कविता सेकने लगी
पता ही नहीं चला.......
सुबह-सुबह खाना तैयार कर,
चावल से मांड़
निकालकर,
लकड़ी की 'कठौती'(लकड़ी की टोकरीनुमा चीज़) में
साग-सब्ज़ी सजाकर,
आँगन,बरामदा और चबूतरा में
झाड़ू लगाकर,
खुशबूदार घी में
पूरी छानकर
कब कविता छानने लगी
पता ही नहीं चला........
लेकिन
मुख्य बात यह है
कि
यह सब घोलते-मिलाते
अचानक परिचय हो गया
'इ-विदेह' से
और
देखते-देखते
बड़े-बड़े लोगों के
मैथिल समाज के
एक कोने में,
जगह मिल गई
मुझे भी.
aapke kavy ki vishayvastu hamesha hi aakarshit karti hai...bahut sundar.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पढ़ने आकर्षित करती बेहतरीन रचना .,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
beautiful journey...kavita kab khud ko likhwa leti hai...pata hi nahi chalta :)
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत अन्दाज़्।
ReplyDeleteमैथिल समाज में जगह मिल गयी यह तो पता चला न .... बहुत खूबसूरती से आपने अपनी काव्य यात्रा लिखी है ...
ReplyDeleteमैथिलि भी समझ में आ गया था और अनुवाद भी बहुत ही बढ़िया है..
ReplyDeleteलिखना एक जादू है ...
ReplyDeleteअचानक परिचय हो गया
ReplyDelete'इ-विदेह' से
और
देखते-देखते
बड़े-बड़े लोगों के
मैथिल समाज के
एक कोने में,
जगह मिल गई
मुझे भी.
खुबसूरत काव्य यात्रा संग सामाजिक छटा
aapko beshak pata na chala..
ReplyDeletepar hame to mithila ki saundhi saundhi mahak dikh rahi hai... bahut behtareen...
abhar:)
देखते-देखते
ReplyDeleteबड़े-बड़े लोगों के
मैथिल समाज के
एक कोने में,
जगह मिल गई
मुझे भी.....वह: बहुत सुन्दर अंदज में लिखा....
बहुत ही सुन्दर कविता |आभार
ReplyDeleteमृदुला जी आपकी कविता का जबाब नही । इतनी मधुर ,इतनी सूक्ष्म दृष्टि और इतनी सशक्त अभिव्यक्ति । वाह..।
ReplyDeleteमैथिली में लिखी गई कविता भी पढी । एक वर्ष विद्यापति जी पाठ्यक्रम में थे सो काफी जानी-पहचानी सी लगी ।बहुत ही सुन्दर
मैथिल समाज के
ReplyDeleteएक कोने में,
जगह मिल गई
मुझे भी.....बहुत सुन्दर अंदज में लिखा !
Behad sundar likhtee hain aap...mai to lekhan bhool-si gayee hun!
ReplyDeleteवाह ...मृदुलाजी ...क्यां कहूं..बस पढ़ती जा रही थी ..और मन कर रहा था ...कविता ख़त्म ही न हो ....बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ....!!!!
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeletewah..itni saralta aur sahajta se apne baate kah di..kamal....bahut sundar...badhai....
ReplyDeletewah..itni saralta aur sahajta se apne baate kah di..kamal....bahut sundar...badhai....
ReplyDeleteसच में....
ReplyDeleteपीछे देखिये तो बहुत सी बातों का पता ही नहीं चला...
जब हो गयीं तब पता चला...!!
गज़ब है यह तो! बेहतरीन कविता।
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