अपने 'ग्रैंड-सन' के लिए पहली बार बँगला में लिखने की कोशिश की है.......लिपि देवनागरी ही रखी हूँ जिससे ज़्यादा लोग पढ़ सकें......आपकी प्रतिक्रिया पता नहीं क्या होगी.....जो भी हो,सर आँखों पर.......
पूजो एलो, चोलो मेला,
हेटे-हेटे जाई,
नतून जामा,नतून कापोड़,
नतून जूतो चाई.
बाबा एनो रोशोगोला,
मिष्टी दोईर हांड़ी,
माँ गो तुमि
शेजे-गूजे,
पोड़ो ढ़ाकाई शाड़ी.
आजके कोरो देशेर खाबा,
शुक्तो,बेगुन भाजा,
गोरोम-गोरोम भातेर ओपोर,
गावार घी दाव
ताजा.
चोलो 'शेनेमा'
'पॉपकॉर्न' खाबो, खाबो
आइस-क्रीम,
आजके किशेर ताड़ा एतो
कालके छूटीर दिन.
रात्रे खाबो 'चिली' 'चिकेन',
भेटकी माछेर
'फ्राई',
ऐई पांडाले,ओई पांडाले,
होई-चोई
कोरे आई.
पूजो एलो, चोलो मेला,
हेटे-हेटे जाई,
नतून जामा,नतून कापोड़,
नतून जूतो चाई.
बाबा एनो रोशोगोला,
मिष्टी दोईर हांड़ी,
माँ गो तुमि
शेजे-गूजे,
पोड़ो ढ़ाकाई शाड़ी.
आजके कोरो देशेर खाबा,
शुक्तो,बेगुन भाजा,
गोरोम-गोरोम भातेर ओपोर,
गावार घी दाव
ताजा.
चोलो 'शेनेमा'
'पॉपकॉर्न' खाबो, खाबो
आइस-क्रीम,
आजके किशेर ताड़ा एतो
कालके छूटीर दिन.
रात्रे खाबो 'चिली' 'चिकेन',
भेटकी माछेर
'फ्राई',
ऐई पांडाले,ओई पांडाले,
होई-चोई
कोरे आई.
ग्रैंड सन को कितने सुनहरे उपहार दिए हैं कल्पना सजाकर
ReplyDeleteअरे बाह.. खूब भालो, खूब शून्दोर काब्य...छेले शुने होर्षित होबे (अगर बांग्ला गलत हो, तो माफ कीजिएगा, भावनाओं को समझें :))
ReplyDeleteचोलो 'शेनेमा'
ReplyDelete'पॉपकॉर्न' खाबो, खाबो
वाह ... :) आनन्द आ गया बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
आभार साझा करने के लिये
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (20-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ! नमस्ते जी!
भालो आछे।
ReplyDeleteआनंद आ गया...सुन कर बांग्ला कठिन लगती है...पर पढ़ कर मज़ा आ गया...बहुत ही मीठी बोली/भाषा है...
ReplyDeleteक्या बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर
bahut khoob mradula ji , aapka blog sada ki tarah muskaan bikherta hua
Deleteअपने 'ग्रैंड-सन' के लिए बड़ी प्यारी रचना लिखी है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...मजा आ गया पढ़कर !
आपने बाल मन का बहुत ही सहज सरल खुबसूरत वर्णन किया है. बधाई
ReplyDeleteकोरो कोरो खूब होई चोई कोरो । पूजोर समय कोरबे ना तो कोखून कोरबे । सुंदर बाल कविता ।
ReplyDeletebhaalo bhaalo laagchi par kuchi samaji nahi.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है
ReplyDeleteबंगला भाषा में रचना की गेयता और माधुरी देखते ही बनती है .बधाई .
ReplyDeleteनया प्रयोग , पढ़ने में भी आनंद आया !
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत , बस पूर्ण समझ मे नहीं आई :) यही कह सकता हूँ ,
ReplyDeleteभालो
एतो शुन्दोर कोबिता पोडे, मोने होलो, जे आमी कोलकाता पहुंचे गेयेछी.. पुरोनो शोमोय, पुरोनो लोक-जोन, शेई मेला, पूजोर पंडाल, शब् एक्केबारे शिनेमार मोटों सामने ठेके घूरे गेलो!!
ReplyDeleteनोमोश्कार!! शुभो बिजोया!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteइस कविता का पॉडकास्ट बनाया है ,कृपया सुनकर बताएं कैसा हुआ है? आपको मेल किया है ....
ReplyDeleteखूब भालो लागलो ... पुरोने दिनेर कोथा गुलि सोब मोने पोरे गेलो ... :)
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