शीत का प्रथम स्वर.........
प्रत्युष का स्नेहिल स्पर्श
पाते ही,
हरसिंगार के निंदियाये फूल,
झरने लगते हैं
मुंह अँधेरे,
वन-उपवन की
अंजलियों में
ओस से नहाया हुआ
सुवास,
करने लगता है
अठखेलियाँ
आह्लाद की,
पत्तों की सरसराहट
रस-वद्ध रागिनी
बनकर,
समा जाती हैं
दूर तक .......
हवाओं में,
गुनगुनी सी धूप
आसमान से उतरकर
आसमान से उतरकर
कुहासे को बेधती हुई
बुनने लगती है
बुनने लगती है
किरणों के जाल,
तितलियाँ पंखों पर
अक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
और
धरती,
मुखर मुस्कान की
थिरकन पर
झूमती हुई,
स्वागत करती है........
शीत के
प्रथम स्वर का.
gahan bhaw
ReplyDeletebahut achchhe bavon ko kavita men sanjoya hai.
ReplyDeleteऔर
ReplyDeleteधरती,
मुखर मुस्कान की
थिरकन पर
झूमती हुई,
स्वागत करती है........
शीत के
प्रथम स्वर का.
मृदुला जी शुभ प्रभात आपने बचपन की याद दिला दी
आदरणीय गुप्त जी की कविता से आपका स्वागत
है बिखेर देती वसुंधरा मोती सबके सोने पर
रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होने पर
हरसिंगार अठखेलियाँ , विदुषी सी चमकार ।
ReplyDeleteबढे धरा का सौन्दर्य, जनमन पर उपकार ।
जनमन पर उपकार, प्रफुल्लित काया नाचे ।
गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे ।
सीधे साँचे भाव, बधाई शुभ स्वीकारो ।
बढ़िया यह सृंगार, धरा पर स्वर्ग उतारो ।।
बेहद भावपूर्ण उत्कृष्ट प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसादर
अनु
तितलियाँ पंखों पर
ReplyDeleteअक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
और
धरती,
मुखर मुस्कान की
थिरकन पर
झूमती हुई,
स्वागत करती है........
शीत के
प्रथम स्वर का.
....बहुत ही सुन्दर दृश्य उकेरा है ....अति सुन्दर ..!!!!!!
शीत का स्वागत करते सुंदर शब्द!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से शीत का स्वागत हुआ है...
ReplyDeleteमनभावन सुन्दर रचना..
:-)
शीत का स्वागत ...बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteहलकी सी ठंड पड़ने लगी है। और् आपने कविता में बिम्बों के द्वारा इसका अद्भुत चित्र खींचा है।
ReplyDeleteवाह..... अति सुंदर
ReplyDeleteउत्कृष्ट शाब्दिक अलंकरण लिए रचना
शरद के आगमन का मनोहर चित्र .प्रकृति के प्रति सम्मोहन
ReplyDeleteपैदा करता सा .
रविवार, 28 अक्तूबर 2012
तर्क की मीनार
http://veerubhai1947.blogspot.com/
गुनगुनी सी धूप
ReplyDeleteआसमान से उतरकर
कुहासे को बेधती हुई
बुनने लगती है
किरणों के जाल,
तितलियाँ पंखों पर
अक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
बहुत खूबसूरती से आने चित्रित कर दिया है शीत को। बहुत अच्छे शब्दों का चयन हुआ है, सचमुच आपकी लेखनी एक समर्थ लेखनी है ।
शरदागमन की सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार ....
ReplyDeleteअत्यंत मनभावन चित्रण..शरद की सुहानी सुबह का...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर वर्णन किया है आपने शरद के आगमन का ...
ReplyDeleteआभार
sach me manbhavan...
ReplyDeleteशीत की प्यारी सी सिहरन का अहसास हुआ आपकी रचना पढ़ कर ... बहुत ही प्यारी सी रचना!
ReplyDeletewaah is nazar se sheet ritu ko dekhne ka aanand aa gaya.
ReplyDeleteस्वागत है...शीत के प्रथम स्वर का...
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteआहा ये शीत के प्रथम स्वर । स्वागत है शरद ।
ReplyDeletebahut sundar ....
ReplyDeleteऔर
ReplyDeleteधरती,
मुखर मुस्कान की
थिरकन पर
झूमती हुई,
स्वागत करती है........
शीत के
प्रथम स्वर का.
बहुत खूब !!
दिवाली की शुभकामनाएं !!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!
vandevii jaise swayan puspsajjit manohari mousam liye padhari ho. Bahut hi manoram drasya hai.
ReplyDeleteशीत तो अब आई है .... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteदुबारा आई यहां तो लगा कि प्रत्युष कहीं आपका पोता या नाती तो नही । ऐसा ही होता है यह स्पर्श ।
ReplyDeletesheet ka pratha swar
ReplyDeletekamkampi deta hua:)))
behtareeen !!
उम्दा प्रस्तुति |शीत के आगमन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआशा