जाड़ों की सुबह-सुबह
सरकाकर सारे पर्दों को,
खोलती हूँ
दरवाज़ा जो.......
मखमली धूप
खिड़की की छड़ों से
छनकर,
हमारी दहलीज को
पारकर,
कमरे की हर चीज़ को
छूने का प्रयास
करती हुई,
छू लेती है........
बिखेड़ती हुई,
अपनी गरिमामय
मुस्कुराहट
कोने-कोने में.......
इस सुनहले स्पर्श के
सम्मोहन से
खिल उठता है
मन-प्राण
और
आत्मसात कर लेती हूँ
इस छुअन को,
अगली सुबह तक के लिये.
सरकाकर सारे पर्दों को,
खोलती हूँ
दरवाज़ा जो.......
मखमली धूप
खिड़की की छड़ों से
छनकर,
हमारी दहलीज को
पारकर,
कमरे की हर चीज़ को
छूने का प्रयास
करती हुई,
छू लेती है........
बिखेड़ती हुई,
अपनी गरिमामय
मुस्कुराहट
कोने-कोने में.......
इस सुनहले स्पर्श के
सम्मोहन से
खिल उठता है
मन-प्राण
और
आत्मसात कर लेती हूँ
इस छुअन को,
अगली सुबह तक के लिये.
कुंकुनी धूप सी रचना ...
ReplyDeleteमखमली धूप सी कोमल रचना..
ReplyDeleteकुनमुनी धूप का अलग ही होता है मज़ा ...
ReplyDeleteसर्दी में धूप का अहसास कराती सुन्दर रचना..
ReplyDeleteथोड़ा और प्रयास बहुत सुन्दर होता । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसर्दी और धूप का अहसास कराती उम्दा प्रस्तुति ,,,, बधाई।
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
कोमल ...सुंदर एहसास .....
ReplyDeleteशुभकामनायें ....
ताज़ी-ताज़ी गुनगुनी धूप सी सुन्दर रचना...
ReplyDeletesardiyon me man ko bha jaye dhup
ReplyDeleteसर्दियों का खुबसुरत चित्रण.
ReplyDeleteसादर.
shabd thand se sihar raha...:)
ReplyDeleteखुबसुरत चित्रण....सर्दियों का मृदुला जी
ReplyDeleteसर्दियों की धूप अनमोल होती है..सुंदर कविता !
ReplyDeleteबहुत ही भाव-प्रवण कविता । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
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