अभी हाल ही में मेरे 'नेफ्यू' की किताब 'when the saints go marching in' प्रकाशित हुई……उसी अवसर पर आधारित है ये कविता......
लिखने-छपने के
इस माहौल में.....
लेकिन.....कपड़ा मेरी पसंद का
तुम्हें पसंद नहीं,
पर्स रखते नहीं,
टाई लगाते नहीं,
जूते,मोज़े ,चप्पल
मेरा दिमाग खड़ाब है क्या ?
कलम,पेंसिल
पता नहीं.....कौन रंग ,
कितनी लम्बाई,
कितने डायमीटर का
रखते हो,
रुमाल ,जाने रखते भी हो
या
नहीं रखते हो .
कौन से राइटर की किताबें
पढ़ते हो ,
किस-किससे है 'कुट्टी'
जानती नहीं ,
मिठाई-विठाई तुम खाते नहीं
अंडा-मुर्गी
मैं लाती नहीं.....
कितना आसान होता
कमीज़-पैंट ,जूता-मोज़ा,
रुमाल-टाई
या फिर
किताबें-कलम ,पेंसिल
साथ में.....
एक डब्बा मिठाई.……
लेकिन तुम्हें जानते हुये,
ऐसी कोई ज़हमत
मैंने नहीं उठाई......और
सोचते-सोचते
दिमाग में,
ये बात आयी.......
क्यों न दूं तुम्हें
अनगिनित शुभकामनायें.....
गिनते रहना......
निश्चय ही खुशी से लोगे,
संभालकर रखोगे.....
अब ऐसा भी नहीं कि
थैंक यू ,थैंक यू
कहने लगोगे......
पता है, घिसी-पिटी बातों में
यकीन नहीं तुम्हें.......पर
मुझे यकीन है
हँस दोगे......और
बड़ों के लिये
बच्चों की हँसी से
बढ़कर
कुछ भी नहीं.......
आपकी लिखी रचना शनिवार 08/02/2014 को लिंक की जाएगी............... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
ReplyDeleteकृपया पधारें ....धन्यवाद!
कितनी सहज ढंग से लिखी कविता हैं.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव..
शायद हर युवा बेटे की माओं के मन की बात हैं |
सादर
अनुलता
वाह..सबसे अच्छा उपहार तो आपने दे ही दिया इस प्यारी सी कविता के रूप में..बधाई आप दोनों को !
ReplyDeleteएक पूरा शब्दचित्र खींच दिया है आपने व्यक्तित्व का... और इससे बेहेतर तो कुछ हो ही नहीं सकता!!
ReplyDeleteएक शिकायत है कि परिचय में आपने मेरे नेफ्यू भर लिखा है.. उनका कोई नाम तो होगा? और अब तो वो नामचीन भी होंगे!
salil jee......unka naam Rajesh Pradhan hai aur ve USA men rahte hain.Patna ke Sri Pradhan Jwala Prasad yani mere jeth jee,unhin ke ladke hain.
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबहुत प्यारा उपहार...
ReplyDeleteबेहद शानदार रचना
ReplyDeleteऔर बडों के लिये बच्चों के हँसी से बढ कर कुछ भी नही। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत खूब...
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