शाख-ए-गुल से
ये मैंने
कहा एक दिन..
अपनी खुशबू तो दे दो
मुझे भी जरा
कि..लुटाऊँगी मैं भी
यहाँ से वहाँ ..
कुछ झिझकते हुये
उसने हामी भरी
फिर कहा-
मित्र , लेकिन..
सिखा दो मुझे पहले
अपनी तरह
तुम ये चलना
मुझे भी
यहाँ से वहाँ ..
शाख-ए-गुल से
ये मैंने
कहा एक दिन..
अपनी खुशबू तो दे दो
मुझे भी जरा
कि..लुटाऊँगी मैं भी
यहाँ से वहाँ ..
कुछ झिझकते हुये
उसने हामी भरी
फिर कहा-
मित्र , लेकिन..
सिखा दो मुझे पहले
अपनी तरह
तुम ये चलना
मुझे भी
यहाँ से वहाँ ..
दिल से दिल तक के
रस्ते पर
भारी,ट्रैफिक जाम लगा है.……
हर्ष-विषादों की
जमघट है,
सही-गलत की
तख्ती है,
चुप्पी की आवाज़
घनी है
अहंकार की
सख्ती है.……
नाराज़ी की भीड़-भाड़ में
तरल गरल की
हलचल है,
चढ़ा मुलम्मा छल पर
निकला,
जिसमें जितना
बल है…….
झूठ-शिकायत की
पेटी है,
इल्ज़ामों के दश्ते हैं,
राजनीति की सधी
चाल से
टूटे-बिखरे
रिश्ते हैं.…….
'सन्डे' की सुबह, 'पॉश-कॉलोनी' की
'बालकनी' में…… जो एक
लम्बा सन्नाटा
बिछ जाता है……
शनिवार की रात का
'साइड-इफेक्ट'
साफ नज़र आता है.
ग्यारह-बारह बजे
हाफ-पैंट धारी 'डैडी' 'पेपर' लिए
केन की कुर्सी पर
फैल जाते हैं……
बड़े-बड़े फूलों वाली
खूबसूरत 'नाइटी' पहने
घर की गृहणी,
बाहर आती है.......
चाय-दूध,बिस्किट,
फल-वल,जाने क्या-क्या
'ट्राली' पर,आया
लाती है....... गृहणी
मुस्कुराती है……
डालती है कपों में
'स्टाइल' से,चाय-दूध,
नफ़ासत की हद तक,
शक्कर मिलाती है....... और
मेरी जिज्ञासा
बढ़ती चली जाती है……कि
आखिर
ये लाम-काफ की चाय
कैसी होती है?
इस 'साइड-इफेक्ट' का
'आफ्टर-इफेक्ट' तो देखिये,
मेरी अपनी गरम चाय,
बिना पीये,बेवज़ह
ठंढ़ी हो जाती है.......