Monday, January 14, 2013

तुम्हारे साथ बीते वे पल ....

तुम्हारे साथ बीते वे पल ....
मैं कहती उन्हें
ठंढी हवा का
एक झोंका..अगर
जेठ की
दुपहरी होती
पर अगहन-पूस की
शाम में,
ठंढी हवा
शीत-लहरी होती है,
राहत  नहीं पहुँचाती
सूई सी
चुभोती है..इसीलिए
बदलनी होगी
पुरानी मान्यतायें,
पुरानी कल्पनायें
और
कहना होगा..
तुम्हारे साथ बीते वे पल.......
जैसे हल्की सी
आहट हो
गर्म-गर्म हवा की,
दिल-ओ-दिमाग को
सुकून सी पहुँचाती हो.

16 comments:

  1. बहुत बढ़िया..मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!,,

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  2. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...

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  3. सुंदर भाव, समय के साथ मान्यताएं बदलनी ही होंगीं

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  4. भावो को संजोये रचना......

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  5. बहुत सार्थक भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  6. जैसे हल्की सी
    आहट हो
    गर्म-गर्म हवा की,
    दिल-ओ-दिमाग को
    सुकून सी पहुँचाती हो.

    सार्थक भावपूर्ण

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  7. बहुत सुंदर सारगर्भित प्रस्तुति,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  8. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  9. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  10. वाह बहुत ही सुन्दर।

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  11. समय के साथ उपमाएं भी बदल जाती हैं..

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  12. परम्पराओं और रूढियों में बड़ा बारीक सा अंतर है.. परम्पराओं को मानने को जी चाहता है, क्योंकि उनमें बदलाव की गुंजायश होती है.. मगर रूढियां, बेडियाँ बन जाती हैं!!
    बहुत खूबसूरती से कही है आपने अपनी बात!!

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  13. बीते पलों की सुन्दर बानगी.........

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  14. हमारी सोच के मौसम पर निर्भर है उपमाएं । बहुत प्यारी कविता नरम धूप के कोमल गर्माहट सी ।

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  15. बहुत सुन्दर कविता, बधाई.

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