Tuesday, April 30, 2013

कभी मुंतज़िर चश्में......


कभी मुंतज़िर चश्में
ज़िगर हमराज़ था,
कभी बेखबर कभी
पुरज़ुनू ये मिजाज़ था,
कभी गुफ़्तगू  के हज़ूम तो, कभी
खौफ़-ए-ज़द
कभी बेज़ुबां,
कभी जीत की आमद में मैं,
कभी हार से मैं पस्त था.
कभी शौख -ए-फ़ितरत का नशा, 
कभी शाम- ए-ज़श्न  ख़ुमार था ,
कभी था हवा का ग़ुबार तो
कभी हौसलों का पहाड़ था.
कभी ज़ुल्मतों के शिक़स्त में 
ख़ामोशियों का शिकार था,
कभी थी ख़लिश कभी रहमतें 
कभी हमसफ़र का क़रार था.
कभी चश्म-ए-तर की गिरफ़्त में
सरगोशियों का मलाल था,
कभी लम्हा-ए-नायाब में
मैं  भर रहा परवाज़ था.
कभी  था उसूलों से घिरा
मैं रिवायतों के अजाब में,
कभी था मज़ा कभी बेमज़ा 
सूद-ओ- जिया के हिसाब में.
मैं था बुलंदी पर कभी 
छूकर ज़मीं जीता रहा,
कभी ये रहा,कभी वो रहा 
और जिंदगी चलती रही ......... 
 
  
 

25 comments:

  1. urdu ke alfaazon ka itna pyara sa prayog pahle nahi dekha tha...
    mere lye bahut behtareen rachna..

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  2. हम न सुने तो भी बहुत कुछ कहती रही..उम्दा..

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  3. वाह....
    लाजवाब...
    कभी लम्हा-ए-नायाब में
    मैं भर रहा परवाज़ था.
    कभी था उसूलों से घिरा
    मैं रिवायतों के अजाब में,
    कभी था मज़ा कभी बेमज़ा
    सूद-ओ- जिया के हिसाब में.

    बेहतरीन नज़्म मृदुला जी...
    सादर
    अनु

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  4. आपका यह अन्दाज़ भी बड़ा अनोखा और नायाब लगा.. एक खूबसूरत अन्दाज़ में ज़िंदगी के बहाव को दर्शाया है आपने.. बहुत खूब!!

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  5. कभी जीत की आमद में मैं,
    कभी हार से मैं पस्त था.
    कभी शौख -ए-फ़ितरत का नशा,
    कभी शाम- ए-ज़श्न ख़ुमार था ,

    बेहतरीन सुंदर नज्म ,,

    RECENT POST: मधुशाला,

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  6. आज की ब्लॉग बुलेटिन आज के दिन की ४ बड़ी खबरें - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  7. कभी जीत की आमद में मैं,
    कभी हार से मैं पस्त था.
    कभी शौख -ए-फ़ितरत का नशा,
    कभी शाम- ए-ज़श्न ख़ुमार था ,
    कभी था हवा का ग़ुबार तो
    कभी हौसलों का पहाड़ था.
    कभी ज़ुल्मतों के शिक़स्त में
    ख़ामोशियों का शिकार था,--------

    जीवन की सारी खूबियाँ,गलतियाँ और जज्बे को व्यक्त करती
    गहन अनुभूति
    बधाई

    आपके विचार की प्रतीक्षा में
    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  8. कभी जीत की आमद में मैं,
    कभी हार से मैं पस्त था.
    कभी शौख -ए-फ़ितरत का नशा,
    कभी शाम- ए-ज़श्न ख़ुमार था ,

    बहुत ही बढ़िया

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  9. ज़िंदगी के दोनों रंग बखूबी उभरे हैं.....

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  10. कभी था हवा का ग़ुबार तो
    कभी हौसलों का पहाड़ था.
    कभी ज़ुल्मतों के शिक़स्त में
    ख़ामोशियों का शिकार था
    वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार

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  11. कभी ये रहा,कभी वो रहा
    और जिंदगी चलती रही ..

    इसके अलावा ओर चाहिए भी क्या जिंदगी में ... चलना ही तो काम है जिंदगी का ...

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  12. मैं रिवायतों के अजाब में,
    कभी था मज़ा कभी बेमज़ा
    सूद-ओ- जिया के हिसाब में.
    मैं था बुलंदी पर कभी
    छूकर ज़मीं जीता रहा,
    कभी ये रहा,कभी वो रहा
    और जिंदगी चलती रही ......

    आपने ज़िन्दगी को और जीने की कला का सजीव चित्रण कर दिया अद्भुत भावनाएं ....

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  13. कभी ये रहा,कभी वो रहा
    और जिंदगी चलती रही ............अनुपम भाव ..............

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  14. मैं था बुलंदी पर कभी
    छूकर ज़मीं जीता रहा,
    कभी ये रहा,कभी वो रहा
    और जिंदगी चलती रही .........

    जीने की कला भी अजीब है.
    सुंदर भावपूर्ण.

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  15. मैं रिवायतों के अजाब में,
    कभी था मज़ा कभी बेमज़ा
    सूद-ओ- जिया के हिसाब में.
    मैं था बुलंदी पर कभी
    छूकर ज़मीं जीता रहा,
    कभी ये रहा,कभी वो रहा
    और जिंदगी चलती रही ......

    वाह मृदुला जी, बहोत खूब ।

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  16. कभी था हवा का ग़ुबार तो
    कभी हौसलों का पहाड़ था.
    कभी ज़ुल्मतों के शिक़स्त में
    ख़ामोशियों का शिकार था,
    कभी थी ख़लिश कभी रहमतें
    कभी हमसफ़र का क़रार था.
    ..बहुत सही ...

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  17. कभी ये रहा,कभी वो रहा
    और जिंदगी चलती रही ............वाह मृदुला जी बहुत सुन्दर भाव..

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  18. बहुत दिन हुए, मृदुला जी।

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  19. बहुत दिन हुए, मृदुला जी।

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  20. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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