Monday, March 31, 2014

साड़ी में फॉल लगाते हुये.......

साड़ी में फॉल लगाते हुये.......अचानक सोचने लगी…… 

सुई के धागों में 
उलझता-सुलझता हुआ 
मेरा मन,
सपनों के टाँके 
लगाता रहा....... 
और……मैं 
समय को 
दोनों हाथों से 
पकड़कर,
मिलाती रही…… 
जोड़ती रही…… 

10 comments:

  1. इतनी सादगी से मन की बात कह डाली आपने...यही अभिव्यक्ति दिल को छूती है मृदुला जी
    .......बहुत सुन्दर पंक्तियाँ

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  2. हम अक्सर ऐसी ही कोशिश करते हैं और यही कारण है कि जिन्दगी कहीं न कहीं बची रहती है । सुन्दर कविता ।

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  3. बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ,सुन्दर कविता ।

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  4. मन सपनों के आगे कुछ देखना ही नहीं चाहता..सच मन के भी पार है और समय के भी.. सुंदर कविता !

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  5. बहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी। बधाई

    एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''मार डाला हमें जग हँसाई ने''

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जीमेल हुआ १० साल का - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  7. अंग्रेज़ी का एक मुहावरा है दोनों सिरों को मिलाना... मेकिंग बोथ द एण्ड्स मीट... आपने समय और सपनों को जोड़ते हुये इस मुहावरे को नया अर्थ दे दिया है!! इसे शब्दों की तुरपाई कहें या कसीदाकारी!! सुन्दर!!

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  8. यह आवश्यक भी है, आपको मंगलकामनाएं !!

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  9. कितती प्यारी सी बात ........ :)

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  10. बहुत ही सुन्दर भावमयी प्रस्तुति.

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