जाने कैसे
पता चल जाता है
मेरी कविताओं को
मेरा उदास होना.....
आने लगती हैं
झुंड-के-झुंड
किताबों के पन्नों से,
डायरी की
काट-छाँट से,
मुड़े-तुड़े कागज़ की
तहों से.......
घुमाने,हँसाने,बहलाने.
ले आती हैं,
लुभावने शब्दों के
मनमोहक पिटारे
कि
चुन-चुन कर सजाऊँ ……
थमा देती हैं
हाथों में
कागज़-कलम-दवात
कि
कल्पनाओं में
पंख लगाऊँ......
और …… मैं
भावों की रस-वीथि में
विचरती हुई,
डूबती हुई,
उतराती हुई,
पुनः
लिखने की कोशिश में
लग जाती हूँ
कि कर्ज़ है मुझपर
कविता का……
तो फर्ज़ मेरा भी है,
निभाती हूँ……
दीदी, आज फिर से गुलज़ार साहब की ज़ुबानी अपनी बात रखना चाह रहा हूँ..
ReplyDeleteमौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है
मिलेगी मुझको
डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुँचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
ना अंधेरा ना उजाला हो, न अभी रात ना दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आऐ
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको!
ये कवि और कविता का सम्बन्ध ही ऐसा है... कौन किसका कर्ज़ चुका रहा है, कहना मुश्किल है!! आप निबाह करती जाइये कविता से यह रिश्ता, हम मुग्ध होते रहेंगे आपकी कविताओं से!!
दर्द और उदासी का कविता में ढलना एक अदभुत प्रक्रिया है । दर्द सभी कोे होता है उदास सब होते हैं पर उसे इस तरह कविता में सब नही ढाल पाते । आप यह बखूबी कर रही हैं मृदुला जी ।
ReplyDeleteहृदय की गहराइयों में उतरकर ,उदासी और दर्द का कविता बनकर निकलना एक अद्भुत लेकिन कठिन प्रक्रिया है जिसे आप बखूबी निभा रही हैं मृदुला जी ।
ReplyDeleteवाह मृदुलाजी ......बहोत ही प्यारी रचना
ReplyDeleteमन के भाव किस तरह कविता में ढलते हैं , कविता ही जानती है !!
ReplyDeleteसुन्दर रचना !
लिखने की कोशिश में
ReplyDeleteलग जाती हूँ
कि कर्ज़ है मुझपर
कविता का……
तो फर्ज़ मेरा भी है,
निभाती हूँ……
..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति