Thursday, April 3, 2014

तुम्हारी खामोशियों की सतह पर.......

तुम्हारी खामोशियों की 
सतह पर....... 
छूट दे रखी है 
मैंने,
अपने प्रश्नों को 
बैठने की…… 
शब्दों को 
टहलने की…… 
कि एक तारतम्य तो 
बना रहे…… 
जैसे भी हो…… 

8 comments:

  1. Behad sundar! Maaf karen ki mai kharab tabiyatke karan niyamse comment nahi kar pati hun.

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  2. कागज़ की ख़ामोशी पे उभरे शब्दों से अनेकों प्रश्न वाह वाह क्या उम्दा सोच आपकी दीदी जी बेहद लाज़वाब, ये आपकी अभिव्यक्ति

    एक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''भूल कर भी, अब तुम यकीं, नहीं करना''

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  3. बहुत सुन्दर...मृदुला जी

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  4. उम्दा है मृदुला जी |

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  6. सुन्दर शब्दों में बाँधा !

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  7. परखना मत परखने से कोई रिश्ता नहीं रहता...बहुत खूबसूरत तरीका लगा आपका...

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