रच नहीं पाती मैं
बेबाक,बिंदास,तुकांत,
अतुकांत,
'तहलका' मचानेवाले
शब्दों के सौजन्य से,
कोई एक कविता......
विफल हो जाता है मेरा
हर प्रयास,
इनकार कर देती है
कलम,चलने से........
या फिर.…फैल जाती है
स्याही कागज़ पर,
सारे लिखे को
धुँधला कर देती है.……
ढूंढती हूँ जी-जान से
उन अक्षरों को,
शब्दों को,भावों को
जुटाये थे जो.……
कितने जद्दो-जहद के बाद.……
लेकिन
मालुम तो है आपको,
फिर से वही-वही बात
नहीं बनती......
नामुमकिन होता है
बार-बार
कलम को मनाना,
चिरौरी-मिन्नतें करना,
जबरदस्ती लिखबाना.....तो
क्षमा कीजियेगा....
रच नहीं पाती मैं
एक ऐसी कविता जो
खून को खौला दे.....
शीशा को पिघला दे.….
बबाल मचा दे.……
मालुम तो है आपको
हर एक की
अपनी-अपनी सीमा होती है........