घर में शादी -ब्याह हो ,मुंडन हो , जन्मोत्सव हो या कोई भी शुभ अवसर हो ,हलवाई के बैठते ही पूरे
घर का माहौल गमगमाने लगता है ,रौनक एकदम चरम सीमा पर पहुँच जाती है . लोग-बाग अकेले ,दुकेले ,सपरिवार आते रहते हैं ,खाते-पीते ,हँसते-गाते ,मौज-मस्ती करते हैं…… न प्लेटों की गिनती न मेहमानों की लेकिन …… ये 'पर -प्लेट' वाली संस्कृति बड़ी बेरहम होती है . मेहमानों की सूची में लगातार कतर-ब्योंत करती रहती है और अंतत: कितनों का नाम खारिज कर देती है . बेचारी 'पर-प्लेट' कितनी मजबूर होती है ……. अपनों को भी गैर बना देती है …….
सचमुच बहुत बेरहम है यह आधुनिक संस्कृति...जबकि धन पहले से ज्यादा ही लगता है
ReplyDeleteसुंदर लेखन , आ. मृदुला जी धन्यवाद !
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अच्छी और सच्ची बात।
ReplyDeleteबेरहम तो है ही--प्लेटों की रीति--खाने भी नहीं देती भर पेट.
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा आपने ....
ReplyDeleteसच कहा आपने ....
ReplyDeletebulletinofblog.blogspot.in/2014/10/2014-10.html
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