Sunday, April 29, 2012

हम तुमसे आकर मिल लेंगे.........


हम तुमसे 
आकर मिल लेंगे 
जब सरसों के 
फूल खिलेंगे.....
जब कोयल का 
पंचम  स्वर
जा आसमान में 
गूँजेगा,
जब वसंत का 
मादक मन 
फूलों की क्यारी में 
झूमेगा,
जब कलियों के 
दामन में 
भँवरे जाकर 
रसपान करेंगे,
हम तुमसे 
आकर मिल लेंगे 
जब सरसों के 
फूल खिलेंगे......
जब पेड़ों की 
कोटर में 
तोता-मैना का 
रूप सजेगा,
जब डाली-डाली पर 
पत्तों से 
रूककर,मधुमास 
मिलेगा,
जब वसंत के 
आँगन में 
किरणों के जाल 
प्रखर होंगे 
हम तुमसे आकर 
मिल लेंगे 
जब सरसों के 
फूल खिलेंगे......
जब तेज़  हवाओं का 
जादू 
सौरभ में जा 
छुप जायेगा,
जब मौसम के 
कोलाहल में 
मधु-गंध नया 
आ जायेगा,
जब धरती पर 
शबनम के मोती 
कोमल पराग से 
खेलेंगे 
हम तुमसे 
आकर मिल लेंगे 
जब सरसों के 
फूल खिलेंगे........   

Monday, April 23, 2012

मैं तबसे सोच रही हूँ.....

बदलते रहते हैं 
ज़रा-ज़रा से शब्द,
बदलती रहती है 
बोल-चाल की भाषा,
समय,स्थान,
परिवेश के साथ 
ऐसे......कि हमें 
पता ही नहीं चलता.
अभी-अभी 
ऐसा ही हुआ.....
बड़ी तरो-ताज़ा सी 
बात है,
घर आये अतिथि से कहा-
'खाना लाती हूँ',
बेहद सादगी भरा 
जबाब आया-
'रहने दीजिये,
खाकर ही चला हूँ 
भात-दाल-तरकारी....
और 
इस भात-दाल-तरकारी जैसा 
सरल वाक्य,
मैं तबसे सोच रही हूँ.....
कब,कहाँ,कैसे 
चावल-दाल-सब्ज़ी
बनकर 
मेरे साथ रहने लगा.


Thursday, April 19, 2012

कतरा-ए-शबनम पे छा जाये जुनूँ.......

ये कैसी है मुहब्बत,है नहीं 
जिसका     गुमां   मुझको, 
इबादत    से   भी     पहले 
वो,   इबादत जान लेते  हैं.
     यहाँ ख़्वाबों की  लज्ज़त में 
     उन्हीं  का अक्स है शामिल,
     वहाँ  दूरी  के   दामन से  वो
     ख़ुद    को    बाँध    लेते   हैं.
मेरी       बेमानियाँ        बातें
मेरी   पेशानियों   के  बल,वो 
मेरी   तल्खियों  तक  के  भी 
आकर    हाल     लेते        हैं.
        हुई   मुद्दत कि  निस्बत है 
        निगहबानी     उन्हीं     की,
        हुनर उनमें   इशारों को भी 
        इतना      मान     देते    हैं.

                         आबशारों    की    सदा- ए- गश्त   में
                   कतरा-ए-शबनम पे  छा  जाये   जुनूँ
                   इश्के-सादिक वो मुझे नायाब देते   हैं 
                   मैं चल नहीं पाता कि वो थाम लेते हैं.   
                                   
                   

       
      

Thursday, April 12, 2012

सब कुछ कहने के लिए......


सब कुछ
कहने के लिए
नहीं होता,
सब कुछ
लिखने के लिए
नहीं होता,
सब कुछ
पढने के लिए
नहीं होता......
कुछ समझने-सोचने,
कुछ सहने-भोगने,
कुछ महसूस करने के लिए
होता है......और
इनका सुख
कहने,लिखने,पढने से
कहीं,      
बड़ा  है.

Wednesday, April 4, 2012

यह आज की नारी है......

नए-नए आयाम
बनाती है,
शिखर पर झंडे
लगाती है,
यह आज की नारी है......
हर जगह
पहुँच जाती है.
सहिष्णुता के
आवरण में
ज्ञान-विज्ञान से,
अन्याय की त्रासदी को
ललकारकर,
आत्मबल के आभूषण से
सुसज्जित,
ईंट-पत्थरों के बीच
कंक्रीट सी.....
कोमलांगिनी की सशक्त
उँगलियों ने,
पकड़ ली है
समय की रफ़्तार,
तकनिकी ज्ञान के
माध्यम से,
खोलती  हुई हर द्वार.
सूछ्म कन्धों पर
दायित्व का
जहाज़  लिए,
अडिग पैरों के
संतुलन
और
असीमित भुजाओं के
अनुशासन से,
श्रम का
योगदान कर
परिवार को सींचती,
स्वाभिमान के
गौरव को
सहेजती,संभालती,
यह आज की नारी है.......
इसमें
एक अलग ही
चमक है,
विकास के
हर आँगन में,
अब
चूड़ियों की खनक है.