बदलते रहते हैं
ज़रा-ज़रा से शब्द,
बदलती रहती है
बोल-चाल की भाषा,
समय,स्थान,
परिवेश के साथ
ऐसे......कि हमें
पता ही नहीं चलता.
अभी-अभी
ऐसा ही हुआ.....
बड़ी तरो-ताज़ा सी
बात है,
घर आये अतिथि से कहा-
'खाना लाती हूँ',
बेहद सादगी भरा
जबाब आया-
'रहने दीजिये,
खाकर ही चला हूँ
भात-दाल-तरकारी....
और
इस भात-दाल-तरकारी जैसा
सरल वाक्य,
मैं तबसे सोच रही हूँ.....
कब,कहाँ,कैसे
चावल-दाल-सब्ज़ी
बनकर
मेरे साथ रहने लगा.
बहुत कुछ बदल गया है.............
ReplyDeleteसहज अभिव्यक्ति...
अनु
वक़्त के साथ ऐसे बहुत से शब्दों में परिवर्तन आ गए हैं, जिनमे अपनेपन का अहसास नहीं होता... बहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteसाधारण सी बात पर गहन सोच ...
ReplyDeleteइस भात-दाल-तरकारी जैसा
ReplyDeleteसरल वाक्य,
मैं तबसे सोच रही हूँ.....
कब,कहाँ,कैसे
चावल-दाल-सब्ज़ी
बनकर
मेरे साथ रहने लगा.
gradually so many things are changing and we are accepting it by heart but its not near to heart.BEAUTIFUL LINES WITH FEELINGS.
जगह-जगह का फर्क है...शुद्ध हिंदी भाषी को अपुन, तेरे, मेरे, तू, तड़ाक करते भी सुन सकते हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ||
ReplyDeletesahaj aur sunder prastuti....waqt ke saat sab badal jata hai,pata hi nahi chalta ki kab mahaul hume apne anurup dhaal leta hai.
ReplyDeleteअति सुन्दर !
ReplyDeleteपर असली मिठास भात दाल तरकारी में ही थी ... फिर तो सभ्यता के मुखौटे चढ़ने लगे ...
ReplyDeleteएक अद्भुत चित्रण
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteकल 25/04/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मैं तबसे सोच रही हूँ ...
वाह ! भात कब से चावल हो गया और बालक कब से बाबा हो गया पता ही नहीं चला, सुंदर कविता..
ReplyDeleteसमय के बदलाव कों बारीकी से पकड़ा है ... बहुत खूब ....
ReplyDeleteबहुत नया सा ख्याल मृदुलाजी ...वाकई यही तो हमारी भाषा की सुन्दरता है ...!!!!!
ReplyDeleteआपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है..
ReplyDeletesarthak post behatrin rachna shabdon ka sundar vinyas man ko moh liya .
ReplyDeletebhaat daal, tarkari se.....chawal daal sabji...!!! SARL SHABDON MEIN GAHRI BAAT...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत प्रभावी है रचना |
ReplyDeleteआशा
यूँ ही साथ चलते चलते पता कहाँ लगता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सरलता में ही सम्पन्नता है।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteसही कहा, कब यह सरलता खो गयी कुछ पता भी नहीं चला. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति :-)
ReplyDeleteआभार