नपे-तुले ,कटे-छंटे
वस्त्र
धारण किये ,
हाथों में
नशीला द्रव्य लिये ,
'चुटकी जो तूने काटी है '
की धुन पर
थिरकते हुये ,
सभ्यता की हदों को
पार करते हुये....... और
दूसरी ओर
लड़कों का शोर
'अच्छी बातें कर ली बहुत
अब करूँगा
गंदी बात '……
वस्त्र
धारण किये ,
हाथों में
नशीला द्रव्य लिये ,
'चुटकी जो तूने काटी है '
की धुन पर
थिरकते हुये ,
सभ्यता की हदों को
पार करते हुये....... और
दूसरी ओर
लड़कों का शोर
'अच्छी बातें कर ली बहुत
अब करूँगा
गंदी बात '……
अब नारी मुक्ति मोर्चा माने या न माने …… लेकिन अपनी गरिमा को गिराने में इन लड़कियों का हाथ भी कुछ काम नहीं.......
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार (12-04-2015) को "झिलमिल करतीं सूर्य रश्मियाँ.." {चर्चा - 1945} पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिलकुल सच कहा है. किसी एक को ही दोष देना उचित नहीं होगा...
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
बहुत सही कहा आपने |ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती |
ReplyDeleteसच तो यही है कि इज़्ज़त अपने हाथ ही होती है ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..