Wednesday, March 10, 2021

वही चेहरा..

 ख़्यालों के दरीचों से 

गुलो-गुंचों की 

मुखबिरी

तसव्वुर के मुहाने से 

वो उठते 

चाँद का मंजर ..

मेरी रातों की 

कश्ती में 

जो आकर के 

जगाता है 

चमक जाता है 

सिरहाने में 

रौशन सा वही 

चेहरा ..

3 comments:

  1. ख्वाहिशों को अच्छी तरह सहेजा आपने अपनी कविता में.......बहुत सुन्दर

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  2. बहुत ही कोमल एहसासों को समेटे और उतने ही कोमल शब्दों में अभिव्यक्त हर प्रेमी के हृदय के स्वर!!

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