Wednesday, July 29, 2009

दरिया की रवानी में .........

दरिया की रवानी में ,फुर्सत का सलीका हो
साज़ों पे रंगे-रौगन ,कोई रोज़ न फीका हो ।
दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
हद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।
अल्फाज़े तरन्नुम में ,लफ्जों का सिलसिला हो ,
ज़हनों -जिगर कि उल्फ़त में ,आपका गुमां हो
रेशम कि डोरिओं में ,ज़ज्वात का मोती हो ,
राहों में गुलिस्तां हो ,फितरत में तबस्सुम हो .

5 comments:

  1. दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
    हद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।... waah , kitni achhi baat kahi hai

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  2. दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
    हद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।

    प्रेम में डूबे हुए अल्फाज़ ...
    बहुत सुंदर.
    आपकी रचना मैंने नयी -पुरानी हलचल में ली है |आप आयें और अपने विचार दें |

    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
    anupama tripathi.

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  3. बहुत बेहतरीन.

    सादर

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  4. नफासत के सलीके में गुँथी बेजोड़ रचना ! सच में हृदय तक उतर गयी ! आभार एवं शुभकामनायें !

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