दरिया की रवानी में ,फुर्सत का सलीका हो
साज़ों पे रंगे-रौगन ,कोई रोज़ न फीका हो ।
दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
हद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।
अल्फाज़े तरन्नुम में ,लफ्जों का सिलसिला हो ,
ज़हनों -जिगर कि उल्फ़त में ,आपका गुमां हो
रेशम कि डोरिओं में ,ज़ज्वात का मोती हो ,
राहों में गुलिस्तां हो ,फितरत में तबस्सुम हो .
Wednesday, July 29, 2009
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दूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
ReplyDeleteहद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।... waah , kitni achhi baat kahi hai
बहुत खूब
ReplyDeleteदूरी हो चाहे कितनी ,बातें भी हो कि ना हो ,
ReplyDeleteहद्दे नज़र से आगे तक ,आपकी दुआ हो ।
प्रेम में डूबे हुए अल्फाज़ ...
बहुत सुंदर.
आपकी रचना मैंने नयी -पुरानी हलचल में ली है |आप आयें और अपने विचार दें |
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
anupama tripathi.
बहुत बेहतरीन.
ReplyDeleteसादर
नफासत के सलीके में गुँथी बेजोड़ रचना ! सच में हृदय तक उतर गयी ! आभार एवं शुभकामनायें !
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