Wednesday, August 12, 2009

माँ सरस्वती........


मणि-माला धारण किये ,
कर-कमलों में
वीणा लिये,
हंस के सिंहासन पर
विराजती
माँ सरस्वती,
दे देना ...
वरदान,
एक ऐसी
विलक्षण शक्ति का
जो
भरती रहे स्फूर्ति ,
सहज ही
मेरे तन-मन में .
कर देना सराबोर
एक ऐसी
भक्ति से ,
जो
जागृत रखे
मेरी चेतना को ,
असीम
संतुष्टि से ।
जगाये रखना
मेरे मन में,
निर्भय विश्वास का
मन-वांछित
उल्लास,
आप्लावित
करते रहना
मेरे विवेक को,
अपनी
सुदृढ़ क्षमताओं के
वरद
हस्त से ,
तुम्हारे
आलौकिक प्रकाश के
माध्यम से ,
सुगम होती रहे,
मेरी
जटिलतायें ,
तुम्हारी
सौहार्दता का अंकुश ,
तेज धार बनकर,
तराशती रहे
मेरी
अनुभूतियों को,
अचिन्त्य रहे
मेरी भावनाओं में ,
तुम्हारा
कोमल स्पर्श,
आभारित रहे ,
मेरे अंतर्मन का
पर्त्त दर-पर्त्त,
तुम्हारी
अनुकंपाओं से
और
सुना सकूँ
तुम्हे ,
जीवन भर,
कविताओं में भरकर,
तुम्हारे दिये हुये
शब्दों के पराग,
तुमसे मिली
आस्थाओं की
पंखुड़ियाँ
और
तुम्हारे स्वरों से
मुखरित ,
अनगिनत
गुलाब .

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