सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें,
ऋतु वसंत का ।
आसमान की भुजाओं में
थमा दें,
पराग की झोली
और दूर-दूर तक उड़ायें
मौसम का गुलाल ।
रच ले हथेलियों पर
केसर की पखुड़ियाँ,
बाँध ले साँसों में
जवाकुसुम की
मिठास,
सज़ा ले सपनों में
गुलमोहर के चटकीले रंग,
बिखेर लें
कल्पनाओं में
जूही की कलियाँ
कि ऋतु वसंत है ....
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें ।
हवाओं के आँचल पर
खोल दें
ख्वाबों के पर
तरू-दल के स्पंदन से,
आकोंक्षाओं के
जाल बुनें ।
झूम आयें
गुलाब के गुच्छों पर
नर्म पत्तों की महक से
चलो
कुछ बात करें ।
आसमानी उजालों में
सोने की धूप
छूयें
मकरंद के पंखों से
कलियों को जगायें,
कि ऋतु वसंत है ....
सूरज की पहली किरण में
नहाकर, तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने बालों में, मैं
चलो स्वागत करें ।
Sunday, September 6, 2009
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कितना खूबसूरत स्वागत है चांदनी का ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता।
ReplyDeleteसादर
वाह कितना सुन्दर अन्दाज़ है स्वागत का।
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